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आध्यात्मिक आलोक
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अतिथि धर्म पालन के हेतु सीताजी भिक्षा लेकर आयीं और रेखा के भीतर से ही उसे भीख लेने को बोली इस पर रावण ने कहा कि-लकीर के बाहर से दो तो ही भिक्षा ले सकता हूँ, यह मेरी मर्यादा है । विवश होकर सीताजी रेखा से बाहर आयीं और उनका हरण हो गया । भगवान महावीर ने भी ज्ञानादि को सुरक्षित रखने के लिए व्रत की लकीर खींच रखी है। यदि श्रद्धा रूपी लकीर के बाहर साधक पैर रखेगा तो खतरे का सामना करना होगा और निश्चय ही उसकी मुक्ति रूपी सीता उससे हर ली जाएगी । श्रद्धा द्वारा काम क्रोधादि विकारों से साधक अपने आप को बचा लेता है। उनका उल्लंघन करना यह अतिचार है। श्रद्धा गुण को बाधा पहुंचाने वाले पांच अतिचार हैं जैसे-१. शंका २. कांक्षा ३. विचिकित्सा ४. पर पाषंड प्रशंसा ५, पर पाषंड संस्तव ।
श्रद्धा हृदय की वस्तु है और वह वाणी द्वारा प्रकट होती है तथा काया के व्यवहार से फैलती या लोक जगत में दृष्टि गोचर होती है । इस प्रकार इसके तीन रूप हैं-१. श्रद्धा २. प्ररूपणा और ३. स्पर्शना ।
जब अज्ञान, मोह और चाहना मन को घेर लेती है तो श्रद्धा विचलित हो जाती है तथा मानसिक निर्बलता जोर पकड़ लेती है । श्रद्धा में आत्म-विश्वास, ज्ञानी तथा ज्ञानी के वचनों पर विश्वास करने वाला ही भली-भांति टिक सकता है । वक्ता यदि विश्वसनीय न हो तो उसकी वाणी पर हर्गिज विश्वास नहीं होगा और वचन पर अविश्वास से श्रद्धा विचलित हो जाएगी, वास्तव में वक्ता पूर्ण विश्वसनीय वह है जिसमें अज्ञान, मोह एवं असत्य नहीं है, साथ ही वह भी विश्वसनीय हो सकता है जिसमें अज्ञान मोह और स्वार्थ का पूर्ण नाश न हो, पर वे उपशान्त स्थिति में हों एवं जो स्वार्थ और लोभ से परे हो, गलत मार्ग और असत्य 'भाषण से समाज को गलत मार्ग में ले जाने में भय खाता हो, तो उस पर भी विश्वास किया जा सकता
मोह के कारण मनुष्य अपने को पीछे खींचता या संशय उत्पन्न करके अनेक प्रकार का तर्क करता है, शंका करके, आत्मा-परमात्मा के विषय में शंकाशील रहना, पाप-पुण्य और बन्ध-मोक्ष पर अविश्वास करना आदि तत्व विचारणा में अनुचित माने गये हैं । शास्त्र में इस स्थिति को शंका रूप दर्शन का प्रथम अतिचार कहा है । विश्वास को लेकर जो शंकाशील रहेगा वह आत्म-साधना में आगे नहीं बढ़ेगा । दवा यदि बेशकीमती हो किन्तु उस पर यदि रोगी का विश्वास नहीं हो तो उससे लाभ नहीं हो सकता । शिक्षक के पास छात्र पढ़ने जाता है पर यदि वहां वह शंकाशील बना रहता है तो सफलता प्राप्त नहीं करता । शिक्षक पर बिना विश्वास रखे उसकी वाणी