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आध्यात्मिक आलोक
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घर में तेल न नून, प्रीत राजा सों साधे ।। पनघट घाट बैठ, त्रियामुख रोटियां लेखे ।
बात में गढ लेय जुद्ध-नयणा नहिं दीठे ।। सुजाण नर जाणों तुम्हें, सुख दुख साखी दर्द के ।
'बेताल' कहे विक्रम सुनो, ए लच्छन का-पुरुष के ।।
जहां पौरुष और साहस नहीं हो, केवल वाणी की शूरता हो, वह सम्माननीय मर्द नहीं होता । घर में बैठे रहने से कोई शुरवीर नहीं बनता । युद्ध भूमि में या अवसर की जगह साहस दिखाने वाला ही खरा वीर कहलाता है।
___स्थूलभद्र संकल्प बली थे । साथ ही उनमें काम करने की दृढ़ता थी । जब जिधर मुड़े, पूरे तन मन की एकता के साथ मुड़े। अन्त में उन्हें त्याग मार्ग के लिए त्रिवेणी की तरह तीन निमित्त मिल गये, रूपकोषा का संग, शकटार की मृत्यु और महामुनि सम्भूति विजय का आगमन व उनका सत्संग । परिग्रह में एक का नाश देखकर फिर उसे दूसरा ग्रहण करना चाहे, तो यह अज्ञानता और अविवेक का ही कार्य कहा जायेगा । जैसे एक पतिंगा दीपक में जलकर राख हो गया और फिर दूसरा उसमें उड़कर जाना चाहे तो यह अज्ञानता की ही निशानी है । जो प्राणी अपने विवेक को जगाकर अज्ञानता को दूर भगाएगा, वह उभय लोक में कल्याण का भागी होगा।
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