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आध्यात्मिक आलोक
शस्त्र कला - ये सब विद्याएं दायित्व के कारण बतलाई । यदि कोई अनधिकारी इस प्रकार उपदेश देता तो गड़वडा जाता किन्तु वे अधिकारी थे, अतः संसार को सीख देकर भी अपने सिद्धान्त पर सदा अटल रहे ।
आनन्द ने पाप कर्म के उपदेश का त्याग कर दिया, इस प्रकार उसने पांच मूलव्रत और तीन गुणव्रत ऐसे आठ व्रत धारण किए। इन व्रतों के धारण करने से उसका जीवन सुरक्षित ही नहीं हुआ वरन् निर्मल एवं प्रकाश पूर्ण हो गया । यदि सिंचन बराबर है तथा बाढ़ नहीं आती तो खेत की फसल सुरक्षित रहती है । अन्यथा उसे नष्ट होने से कोई बचा नहीं सकता । व्रत नियम की साधना स्वीकार करने पर काम-क्रोध आदि आत्म गुणापहारी प्रथम तो मनमन्दिर में घुस नहीं पाएंगे पर कदाचित् भ्रमवश घुस भी जायें तो टिक हर्गिज नहीं पाएंगे ।
संसार में पापी तो हजारों हैं पर धर्मियों की संख्या कुछ अधिक नहीं है । ऊंचाई की और चढ़ने में सबको स्वभावतः कठिनाई होती है किन्तु फिसलना बड़ा आसान होता है और यही कारण है कि अच्छे से बुरों की संख्या अधिक है । धार्मिक-जन का जीवन सफेद चादर के समान है । यदि रंगीन काली चादर हो तो कोई दाग नहीं दिखेगा, किन्तु उजली चादर पर छोटी-सी स्याही की बूंद भी खटकती है । किन्तु कीचड़ सने में छोटा-मोटा धब्बा क्या दिखेगा ? कोयले की तरह जिसका जीवन काला है वहां दाग की क्या बात ? साधु सन्त और भक्त गृहस्थ सफेद चादर की तरह हैं, उनमें छोटा-मोटा दोष भी खटकता है । जीवन के मार्ग में कदम बढ़ाते हुए उन्हें अधिक सतर्क रहना चाहिए । अधर्मीजन काले कम्बल के समान हैं, उस पर भला दागों का क्या असर होगा ? चावल में से कंकर और मिट्टी के कण निकाले जाते हैं परन्तु उड़द की भरी थाली में से काली वस्तु क्या निकाली जाय ? अतएव व्रती जीवन शुद्ध रखने की आवश्यकता है । जो अधर्म या पापाचारों से अपने को सुरक्षित रख लेगा वह संसार की माया के असर से बच पाएगा ।
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महामुनि स्थूलभद्र का जीवन भी इसी प्रकार का बन गया है । यद्यपि उसने पूर्ण व्रती जीवन अंगीकार नहीं किया है, परन्तु राग से विराग की ओर मुंह मोड़ लिया. है, भोग की जगह योग से उसका सम्बन्ध दृढ़ होता जा रहा है। इसी कारण उसने महामन्त्री के पद को ठुकरा दिया। अब वह भौतिकता से दूर रहकर आध्यात्मिकता की शरण पकड़ना चाहता है । विराग की ओर प्रवृत्ति वाले के लिए महामन्त्री का रागी पद आकर्षक नहीं रहा। रूपकोषा का उपासक स्थूलभद्र मोक्ष का उपासक बन गया | स्थूलभद्र ने राजा नन्द से कहा कि मैं अब अलख को लिखूंगा । जिसे चर्म चक्षु से नहीं देखा जा सकता उसें ज्ञान दृष्टि से देखने का प्रयास करूंगा। अब मुझे