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आध्यात्मिक आलोक
207 करूंगा। अब मुझे भोग नहीं चाहिए, विरति से रति को जोड़ना है । मैंने सोने चांदी तथा अन्य सुन्दर कहे जाने वाले पदार्थों को भरपूर देखा, पाया और जी भर कर उनका उपभोग भी किया किन्तु अन्ततः अतृप्त ही बना रहा । मेरी कामना अधूरी की अधूरी ही रही । अतः अब ऐसे को अपनाना चाहता हूँ जिसे पाकर पाने की कुछ कामना मन में शेष नहीं रह जाय । अलख, निरंजन, निराकार का साक्षात्कार ही अब इस जीवन का एक मात्र आधार व लक्ष्य होगा ।
लोगों ने तरह-तरह से स्थलभद्र को समझाया कि संसार को परित्याग कर केवल अपना हित कर पाओगे, परन्तु मन्त्री पद ग्रहण करने से पूरे देश का हित करने में समर्थ रहोगे । यह सुनकर स्थूलभद्र ने कहा कि राजनीति और धर्मनीति में महान् अन्तर है । राजनीति में कहो कुछ और करो कुछ की नीति अपनायी जाती है । योजना कुछ बनायी जाती है एवं क्रियान्विति कुछ की जाती है । इस प्रकार राजनीति का स्वरूप अस्थिर, दोलायमान और चंचलतामूलक है किन्तु धर्मनीति स्थिर और सुदृढ़ है। अतएव मैं धर्मनीति का पल्ला पकड़ना चाहता हूँ।
राजनीति और धर्मनीति का समन्वय हो तभी वह लाभकारी हो सकती है । यदि राजनीति में धर्म का प्रवेश न हो, तो मनुष्य अपने जनों को भी पराया मानने पर उतारू हो जाता है । अर्थनीति और राजनीति में महान दुर्गुण है कि वह अपने उत्कर्ष के लिए अन्य सबका सफाया करने पर उतारू हो जाती है । अतएव अर्थनीति और राजनीति कुटिल कही गई है । राजनीति में दया, पाखंड की तरह प्रदर्शन भर की वस्तु मानी जाती है । वास्तव में निष्ठुरता और कुटिलता ही राजनीति की सहचरी है। धर्मनीति सीधी चाल वाली है - उसमें छल-कपट का कोई स्थान नहीं है । यही . कारण है कि राजनीति वाले धर्मनीति वालों को अपना शिकार बनाने में नहीं चूकते। . उसके लिए तर्क दिया जाता है कि जंगल के सीधे झाड़ काटे जाते हैं और टेढ़े-मेढ़े वृक्ष कम कटते हैं लोक में भी राजनीति द्वारा सीधों की दुर्गति होती है। यही कारण है कि आजकल कुटिल को होशियार माना जाता है । आज तो संविधान का भी गलत अर्थ लगाया जाता है और लोग धर्मनिरपेक्षता की वकालत करते हुए कहते हैं कि धर्म से धर्मान्धता और साम्प्रदायिकता बढ़ेगी । अतः धर्म अफीम की तरह त्याज्य है। किन्तु स्थूलभद्र कहता है कि राजन् ! मुझे राज्य और अर्थ से कोई प्रयोजन नहीं, मैं तो महामुनि संभूति विजय के चरणों में जाकर धर्मनीति की शरण ग्रहण करूंगा । राजनीति और अर्थनीति के मोहक पाश में आज तक उलझ कर मैंने अपना जीवन
और यौवन व्यर्थ गंवाया । इस प्रकार यदि हम धर्मनीति अपनाएगे, तो लोक एवं परलोक में अपना भला करेंगे।