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आध्यात्मिक आलोक कहावत है कि आप अपना धन गंवाते हैं तो कुछ नहीं गंवाते, कारण धन आता और जाता है । स्वास्थ्य गंवाते हैं तो कुछ गंवाते हैं क्योंकि सब कुछ स्वास्थ्य पर ही निर्भर है और यदि ज्ञान या चरित्र गंवाते हैं, तो सब कुछ गया समझिये । जैसे किसी वृक्ष को काट दें तो वह नष्ट हो जाता है । फल, फूल
और डालियां गईं तो कोई खास हानि नहीं, क्योंकि पत्ते, एवं फल फिर लग जाएंगे 1 किन्तु मूल काट देने से सब बेकार है । ऐसे धर्म या चारित्र मूल हैं जिसे बचाना आवश्यक है।
जितना श्रुत बल घटेगा, उतना ही चारित्र बल कमजोर होगा | आज श्रद्धा बल को तो विज्ञान ने छीन लिया है, उस पर आक्रमण कर दिया है । अतः फिर से उसे जागृत कीजिए । जीवन श्रुत बल से ही पुष्ट हो सकता है । श्रुत बल से या ज्ञान बल से साधारण मानव ही नहीं अच्छे-अच्छे संत को भी प्रेरणा मिलेगी । उपाश्रय या मन्दिर को सिर्फ इने गिने वृद्ध और कार्य निवृत्त पुरुषों के लिए ही सुरक्षित न रखिये, किन्तु सर्वसाधारण उपासकों के लिए उनको ज्ञान एवं साधना का केन्द्र बनाया जाना चाहिए । अन्यथा वहां धूल जमेगी । उपाश्रय और मन्दिरों में सामूहिक श्रुत चिन्तन और आत्म-साधन होना चाहिए। यदि श्रुतबल का आधार लेकर चारित्रबल मजबूत बनाया गया तो, साधक अपना लोक एवं परलोक दोनों को कल्याणकारी बना सकेगा।