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आध्यात्मिक आलोक
187 एवं दिमाग से काम लेता है । भाव निद्रा में प्रमाद या अज्ञानता का जोर होता है। युवक, वृद्ध सभी विविध प्रकार की भौतिक योजनाएं बनाते हैं, किन्तु आत्म-साधना का समय आने पर उसे भविष्य के लिए छोड़ना चाहते हैं । यह भाव निद्रा का ही रूप है । ज्ञानी कहते हैं युवावस्था में शारीरिक शक्ति जैसी बलवान होती है वैसी आगे नहीं रहेगी, अतएव शुभ कर्म तत्काल कर लेना चाहिए । किसी कवि ने ठीक ही कहा है
जो काल करे सो आज हि कर, जो आज करे सो अब करले । जब चिड़ियां खेती चुग डारी, फिर पछताये क्या होवत है।
"गई वस्तु सोचे नहीं, आगम वांछा नाहिं ।
वर्तमान वर्ते सदा, सो ज्ञानी जग मां हि ।। एक वृद्ध मुसलमान सज्जन की बात है। उसका ४५० रुपये मासिक कमाने .वाला पुत्र रोगग्रस्त होकर चल बसा, जो एकमात्र बुड्ढे का सहारा था । मियांजी का गांव से भी अच्छा व्यवहार था । अतः उनको सान्त्वना देने को बहुत से लोग आए। एक जैन भाई भी आए । मियांजी ने कहा कि-"मैं आप लोगों का आभार मानता हूँ कि आप लोग मुझे पुत्र वियोग में सान्त्वना देने आए हैं, परन्तु वह तो वास्तव में भगवान की धरोहर थी । आपके पास किसी की धरोहर हो, तो उसे राजी खुशी या दुःख से भी लौटाना होता है । जमा रखने वाले ने अपनी वस्तु उठाली, तो उसमें बुरा क्यों मानना ?" यह कितनी सुन्दर समझ की बात है । प्रिय-वियोग में लोग जमीन-आसमान एक कर देते हैं, पर उससे क्या फल मिलता है। आखिर शान्त तो होना ही पड़ता है। जब मोह में मनुष्य धैर्य नहीं खोवे, तभी वह आनन्द पा सकता है । जो मोह और अज्ञानता से दूर रहेगा, वह लोक और परलोक दोनों में कल्याण प्राप्त करेगा, यह ध्रुव सिद्धान्त है।