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आध्यात्मिक आलोक
जिसमें या जिसके कारण जीव भान भूले, वह प्रमाद है । शब्द-शास्त्र में कहा है कि-"प्रकर्षण माद्यति जीवो येन स प्रमादः" प्रमाद में मनुष्य करणीय या अकरणीय का विवेक भूल जाता है, उन्मत्त हो जाता है । विषय में भी प्राणी मत्त हो जाता है तब साधना नहीं कर पाता । क्रोध, मान, माया और लोभ ये कषाय रूप प्रमाद हैं । ये जीवन-निर्माण के बाधक तत्व हैं, जो विरति भाव को जागृत नहीं होने देते । सच्चरित्र का पालन नहीं करने देते । ये आत्मा के भान को भुला देते हैं और जीवन को लक्ष्यहीन बना देते हैं।
रूप, गंध, रस, स्पर्श और शब्द इन पांचों में रतिमान होकर मानव हित अनहित को भूल जाता है । इन्द्रियों से रूपादि ग्रहण करना और उनमें आसक्त होना, ये दो भिन्न बातें हैं । सावधानी या विवेकपूर्वक इनका उपयोग प्रमाद नहीं है, क्योंकि जीवन यात्रा में पद-पद पर इनकी जरूरत रहती है और इन्द्रिय ज्ञान के लिये इनका उपयोग भी है। किसी वस्तु को देखना प्रमाद नहीं है परन्तु मनोहर रूप को घूर घूर कर देखना, उसमें भान भूल जाना, यह प्रमाद है । सुगन्ध अच्छी वस्तु है, किन्तु उसमें दृढ़ प्रीति होना या तन्मय होना, प्रमाद का रूप है । पेट भरने के लिए पदार्थों की कमी नहीं है, परन्तु विशिष्ट वस्तु की प्राप्ति के लिए मनुष्य लालायित रहता है । वह विलासिता में फंसकर पशु-धन की बर्बादी पर ध्यान नहीं देता, भले दूध-धी की कमी को दीर्घकाल तक सहन करना पड़े। स्वाद और लोभ मनुष्य को स्वार्थान्ध बना देता है । यह कषायरूप आंतरिक प्रमाद का ही पारेणाम है।
जो कथनीय नहीं हो तथा जो कथा श्रोता को स्वभाव से विपरीत ले जाती हो वह विकथा है । विकथा के चार एवं सात भेट किए गए हैं।
स्त्री कथा (पुरुष के लिए) और पुरुष कथा (स्त्री के लिए) २-भत्त कथा (खान-पान की कथा) ३-राज कथा ४-देश कथा ।
आत्मा को स्वभाव से हटाकर पर-भाव में ले जाने वाली विकथा शांत रस में रौद्र और श्रृंगार का वीभत्स रस उत्पन्न कर देती है। कथा में करुण रस या शान्त रस की बातें हों, तो अच्छी है । वाचक को क्रथा कहने में इतनी सतर्कता अश्य रखनी चाहिए कि उसके द्वारा राग का शमन हो और मन में शान्ति का अनुभव हो।
उपरोक्त चार विकथाओं से मोह जगता है, किन्तु दैराग्य या ज्ञान का जागरण नहीं होता । धर्म-साधना और व्रत के समय राज्य आदि की कथा करना, प्रमाद को प्रश्रय देना है। जैसे मिठास के पीछे मनुष्य घास भी चूस लेता है और . मिठास के लालच में सड़ी-गली चीज भी खा जा है। खली के साथ पशु पुराने चारे को भी आसानी से खाता है । विकथा भी वैसा ही मीठा कचरा है ।