________________
176
आध्यात्मिक आलोक
समझा जाता है । स्वार्थ अपने शुद्ध रूप में अच्छा है, पर आज उसका प्रयोग गलत अर्थ में हो रहा है । मनुष्य अल्प धन-लाभ को स्वार्थ समझ कर इसके लिए झूठ, धोखा आदि का सहारा ले रहा है क्या यह वास्तविक स्वार्थ है ? वास्तव में तो इससे स्वार्थ बिगड़ रहा है, प्रामाणिकता उठती जा रही है तथा लोक और परलोक दोनों बिगड़ रहे हैं । यह अशुद्ध स्वार्थ है । अशुद्ध स्वार्थ या भौतिकता का प्रेम आत्मोन्नति को बिगाडने वाला है । शुद्ध स्वार्थ जिसको आत्मा का कार्य अर्थात् आत्महित कहना चाहिए ही अपनी उन्नति करने वाला है। इस प्रकार सुमार्ग में चलने वाले अपनी आत्मा को शुद्ध करते तथा परलोक में भी कल्याण के भागी बनते हैं ।