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आध्यात्मिक आलोक अणुव्रत और भोग वस्तुओं के परिमाण के नियम तभी सार्थक होंगे, जब अनर्थ दण्ड का परित्याग किया जाय । अनर्थ दण्ड छोडने वाला, अर्थ दण्ड की भी कुछ सीमा करता है । द्रव्य, क्षेत्र और काल से वह त्याग कर सकता है । बिना मतलब के हिंसादि पाप का सेवन अनर्थ दण्ड है । अनर्थ दण्ड से अणुव्रतों की मर्यादा सुरक्षित नहीं रहती । अतः आनन्द ने भी अनर्थ दण्ड का त्याग किया ।
अनर्थ दण्ड के प्रमुख कारण १. मोह २. अज्ञान तथा ३. प्रमादं हैं। भगवान महावीर ने अनर्थ दण्ड के चार प्रकार किए हैं जैसे (6) अपध्यान-दूसरे का नाश या बिगाड़ सोचना, ईर्ष्या करना, रोना, पीटना आदि ये अपध्यान हैं । सेनापति देश की रक्षा के लिए युद्ध की योजना बनावे, तो यह कार्य अर्थ दण्ड है, क्योंकि उसके लिए वह आवश्यक है । लेकिन हमले की नीति से किसी पर बिना कारण आक्रमण करना अनर्थ दण्ड है । नौकरी छूटने या व्यवसाय में हानि होने से आर्तभाव होना स्वाभाविक है । इस प्रकार अपध्यान के भी दो प्रकार हो जाते हैं-एक रौद्र रूप अपध्यान और दूसरा आर्तरूप अपध्यान । द्वेष या लोभवश किसी दूसरे पर आक्रमण करना, यह रौद्र रूप है । इष्ट वियोग से आर्त करना किसी गृहस्थ के यहाँ जाकर उसके दुःख को पुनः जागृत करना यह आर्त रूप अपध्यान है, यह अनर्थ दण्ड है । जहाँ मतलब हल नहीं होने वाला हो, वहाँ व्यर्थ विषाद करने से क्या लाभ ?
भगवान महावीर स्वामी ने मन को निराकुल स्थिति में बनाने का उपदेश दिया है। हिंसा, चोरी आदि पाप का बाह्य रूप है । तो अपध्यान भीतरी रूप है।
अपध्यान करने वाले का पाप नहीं दीख पड़ता; परन्तु इससे उसके आत्म गुण का हनन अवश्य होता है । वह मन को निर्मल नहीं रख सकता । धन, जन पर यदि तीव्र आसक्ति नहीं रहेगी, तो आर्त नहीं होगा । जहाँ अपध्यान रहेगा, वहाँ शुभध्यान नहीं रहेगा और शुभ भाव नहीं आएंगे तो बुरे भाव बढ़ेग । जब अपध्यान तीव्र होगा; तो आवेश में मनुष्य बडेबडे कुकर्म भी कर डालेगा । वह उत्तेजित होकर विष-पान कर डाले या दूसरों की हत्या भी कर डाले तो कोई आश्चर्य नहीं। परीक्षा में अनुत्तीर्ण या नौकरी से निकाले गए नवयुवक अपध्यान तथा महा आर्त अवस्था में, रेल की पटरी पर गिरके या जल में डूब कर आत्म हत्या कर लेते हैं । वियोग वाला आर्त के चक्कर में तथा सताया हुआ रौद्र भाव में रह कर, अपना नाश पहले कर लेता है।
___ अतएव प्रत्येक कल्याण कामी मनुष्य का यह कर्तव्यं होता है कि वह . अपध्यान से होने वाला अनर्थ दण्ड छोड़ दे । अर्थ से होने वाले अपध्यान का