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आध्यात्मिक आलोक
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बात सुनकर घबरा जाता है किन्तु अपने सांसारिक जीवन की कठिनाइयों को लक्ष्य में नहीं रखता । वह अर्थ लाभ के लिए सर्दी, गर्मी, वर्षा, भूख, प्यास आदि सभी सहन करता है किन्तु धर्म पालन के नाम पर थोडा भी कष्ट पाकर चंचल चित्त हो जाता है। भगवान महावीर स्वामी कहते हैं कि हे संसार-रत-मानव ! वसुधा को चीरकर छोटे-छोटे बीज बोकर अधिक की आशा क्या करता है ? तू अपने हृदय की खेती कर, जहां चाहे तो कल्प वृक्ष उगा सकता है और मनवांछित फल पा सकता है । इसमें आक-धतूरे जैसे जहरीले पौधे तथा कंटीले झाड़-बबूल आदि उगाकर अपने श्रम को व्यर्थ क्यों बनाता है ?
खेत के झाड़-झंखाड कभी भी उखाडे जा सकते हैं किन्तु हृदय में उगे . कंटीले झाड़ आसानी से नहीं उखड़ पाते । जीवन में तम्बाखू, शराब, जुआ एवं वेश्यागमन आदि की कुटेव पड़ गई तो जहरीला झाड़ लग गया समझो । उन्हें उखाडू फेंकना कोई आसान काम नहीं होगा | व्यसन की पराधीनता इतनी बलवती है कि रिक्शे वाले रिक्शा खड़ाकर भी शराब पीने लगते तथा जुआ खेलने लगते हैं । यद्यपि यह गैर कानूनी काम है पर एक बार आदत पड़ जाने के बाद फिर धर्म और कानून की याद नहीं रहती । हृदय रूपी क्षेत्र में सत्य, अहिंसा और प्रभु भक्ति का वृक्ष लगाइए जिससे हृदय लहलहाएगा, मन निःशंक, निश्चिन्त एवं शान्त रहेगा । देखिये कविवर चिमनेश क्या कहते हैं
मजबूतिपनो रखना मन में, दुःख दीनपनो दरसावनो ना । कुल रीत सुमारग में बहनो, रहनो उर आन अभावनो ना ।। चिमनेश हंसी खुश बोलिये में, यहां काहु से वैर बसावनी ना ।
पर उपकार करो ही करो, मर जावनी है फिर आवनो ना ।।
कितनी अच्छी बात है यदि यह नीति अपनाई जाय तो जीवन सुन्दर बनेगा तथा लोक और परलोक दोनों का हित साधन हो सकेगा।