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आध्यात्मिक आलोक
भी। पंडित उन्मत्त की तरह मंत्री के महल की ओर घूमता रहता ताकि कुछ भेद
मिल सके ।
अर्थ, काम, सत्ता और मान भंग का उन्माद अनन्त काल से मानव को सताता आ रहा है । इस प्रकार से बेसुध मनुष्य यदि प्रभु भक्ति में लग जाय तो बेड़ा पार हो सकता है। मीरा का मन भोग, विलास, दास-दासी एवं ऐश्वर्य में नहीं लगा । वह प्रभु भक्ति में ही उन्मत्त सी हो गई । जैसे किसी वस्तु के गुम होने पर मनुष्य दुःखानुभव करता है, वैसे ही यदि व्रत भंग होने पर पीड़ा मानने लगे तो परलोक सुधर जाय । मीरा कहती है
एरी मैय्या ! मैं तो राम दीवानी, मेरा दर्द न जाने कोय | घायल की गति घायल जानै, और न जाने कोय 11
मीरा राणाजी से कहती है- तुम लोगों को मेरी बीमारी का पता नहीं है । तुम लोग डॉक्टर वैद्य बुलाते हो, पर मेरी बीमारी को नहीं समझ रहे हो । काम और अर्थ के दीवानों के अनेक उदाहरण देखे गए हैं, अब तो मनुष्य को भगवद् भक्ति का दीवाना बनना चाहिए ।
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मानव जीवन में पर्व का महत्वपूर्ण स्थान है । ये केवल खाने-पीने और मनोरंजन के लिए ही नहीं, वरन् साधना के लिए भी हैं । पर्व या त्यौहार अतीत काल से ही हमें जीवन-निर्माण का पाठ पढ़ाते आए हैं और पढ़ा रहे हैं तथा भविष्य में भी पढ़ाते रहेंगे । अच्छा निमित्त पाकर भी यदि मनुष्य प्रमादी बन जाय, तो पर्व उसका साथ कहां तक दे सकेगा । अपने साथ सदा अहिंसा, सत्य, संयम की सुवास लेकर चलना चाहिए, ताकि वातावरण सुरभित रह सके।
आज तो देश में अपना राज्य है । आप चाहें जैसा विधान बनाएं, नक्शे बनाएं और देश को सजाएं या संवारे । राष्ट्रपिता बापू ने सत्य और अहिंसा के चमत्कार के द्वारा देश को आजाद करके दिखा दिया और आप लोगों के लिए मार्ग प्रशस्त कर दिया कि आप चाहें वैसा देश को बनावें । परतंत्रता के दिनों में भी अहिंसा सत्य के विपरीत कार्य होने पर लोग शासकों का आसन हिला देते थे । किन्तु आज हिंसा उग्ररूप धारण कर रही है और आपका मुंह बन्द है । इससे तो मालूम पड़ता है कि अब अहिंसा में लोगों का विश्वास नहीं रहा जो पहले था । नहीं तो अपनी सरकार के द्वारा जिसकी नींव सत्य और अहिंसा पर आधारित है, बड़े-बड़े कत्लखाने खोले जांय ! और जनमत उसको बन्द नहीं करा सके । अग्रेजों