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आध्यात्मिक आलोक
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यह भारतीय संस्कृति की धरोहर है और हमें विरासत के रूप में प्राप्त है । यह श्री ऋषभदेव, राम, कृष्ण और महावीर की धर्मभूमि है। यहां जीवन में न्याय, नियम, सदाचार एवं ज्ञान क्रियापूर्वक आदर्श के पालन की परम्परा है ।
यदि कोई रक्षक दल का पुरुष ही मोहवश भक्षण करने लगे, तो जीवन महान् पतितावस्था को पहुँच जाएगा। मनुष्य अपने को मुक्ति मार्ग का पथिक या देव नहीं बना सके, तो कम से कम दानव तो नहीं बने ।
चार बातें मनुष्य को पशु की कोटि में उतार देती हैं । (१) झूठ (२) कपट (३) कूट माप तौल एवं (४) आर्त्तभाव | पशुता से बचने के लिए इन कारणों का परित्याग आवश्यक है । ऐसी ही चार बातें नरक योनि में ले जाने वाली हैं- जैसे- १. महा हिंसा, २. महा परिग्रह, ३. मनुष्य एवं पशु हत्या और ४. मांस भक्षण | ज्ञान मनुष्यों को अत्याचार, मायाचार, आदि से बचाकर सन्मार्ग के अभिमुख करता है, क्योंकि धर्मनीति से प्रेरित मानव अनायास ही स्व-पर के लिए सुखदायी हो सकता है।
राजनीति में दण्ड के द्वारा जीवन सुधार की बात भ्रामक है, क्योंकि कुप्रवृत्तियों के स्थान में सद्वृत्तियों को जागृत करने का वहां कोई व्यावहारिक प्रयास नहीं होता । गलत और झूठी आवश्यकताओं को लेकर आदमी अनीति करता है । नियमों से यदि जीवन संयमित होगा, तो वह स्वतः कुमार्ग से बच सकेगा ।
अपने वैभव प्रदर्शन हेतु, प्रीतिभाजन बनने के लिए अथवा अपने ओछे स्वार्थ हेतु व्यक्ति को कर्त्तव्यच्युत करने के लिये भी अनेक लोग, राजकर्मचारियों, मन्त्रीगणों या अन्य लोगों के सम्मान में प्रीतिभोज एवं स्वल्पाहार आदि का आयोजन करते हैं। जीवन में यदि नियमन को स्थान दे दिया जाय, तो अधिकारी और सामान्य व्यक्ति दोनों गड़बड़ाने से बच सकेंगे । आज भली बातों का मनुष्य पालन नहीं कर रहा है इसका कारण इन्द्रियों पर विजय प्राप्त नहीं होना और दिखावे में तथा स्वार्थान्धता में पड़ जाना ही है ।
आनन्द महावीर स्वामी की अमृतवाणी से प्रभावित होकर सादे जीवन और आध्यात्मिक विचार का अनुयायी बन गया । उसने अपनी आवश्यकता सीमित कर लौकिक एवं परलौकिक दोनों जीवन को सुधार लिया ।
आज का समाज यदि अपनी बढ़ती हुई आवश्यकताओं को कम नहीं करके, धन-संग्रह की प्रवृत्ति पर जोर लगाता रहा, तो वह दिन अधिक दूर नहीं, जब मनुष्य नीति मार्ग से च्युत होकर पतन के गहरे गर्त में गिर जायेगा । भारत की प्राचीन