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[ ३१ ] चिन्तन की चिनगारियाँ
साधना के मार्ग पर चलने वाला साधक, जब तक अज्ञान का पर्दा दूर नहीं कर लेता, तब तक कर्तव्य और अकर्तव्य का वह भेद नहीं कर पाता । उसे टकराने तथा कुमार्ग में गिरने से बचाने के लिए, शास्त्रों के माध्यम से प्रेरणा दी जाती है। ताकि वह सुमार्ग पर चलता रहे और लक्ष्य से गिरने नहीं पावे ।
शास्त्रों में साधना पथ पर चलने वालों के लिए चार साधक तथा चार ही बाधक बातें बताई गई हैं । बाधक बातें इस प्रकार हैं - १. बार-बार चार प्रकार की विकथा करते रहना २. विवेक से आत्मा भावित नहीं करना ३. पिछली रात में धर्म-जागरण नहीं करना और ४. निर्दोष आहार की सम्यक् प्रकार से गवेषणा नहीं
करना ।
जो साधक आहार-शुद्धि की गवेषणा नहीं करेगा । वह स्वाद तथा पेट भरने के चक्कर में पड़कर आत्म-कल्याण से विमुख हो जाएगा । आहार में भक्ष्य - अभक्ष्य का विचार नहीं करने वाला अशान्ति प्राप्त करता है । उसे सच्चा ज्ञान नहीं मिल सकता ।
आत्म- हित के विपरीत कथा को विकथा कहते हैं अथवा अध्यात्म से भौतिकता की ओर तथा त्याग से राग को और बढ़ाने वाली कथा विकथा कहलाती है। विकथा साधना के मार्ग में रोड़े अटकाने वाली और पतन की ओर ले जाने वाली है, अतः साधक को उसमें संभल कर पांव रखना चाहिए ।
कितना भी महान् से महान् पढ़ा लिखा क्यों न हो, यदि वह शान्त समय में चिन्तन नहीं करे, तो आत्म-स्वरूप को पहिचान नहीं पाएगा । आकाश और पाताल की दूर-दूर की बातों की ओर मानव का ध्यान जा रहा है, पर अपने स्वरूप की