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___ आध्यात्मिक आलोक संस्कृति के अनुसार यदि मानव अपनी इच्छाओं पर नियन्त्रण रख कर चले, तो बचे हुए धन से दान तथा अन्य पारमार्थिक कार्य शान्तिपूर्वक कर सकता है । इस प्रकार अपनी आवश्यकताओं के बढ़ते वेग को रोक कर मनुष्य अपना तथा दूसरों का भी आसानी से भला कर सकता है । मानव यदि इस आदर्श को ग्रहण कर ले तो दण्ड-नीति का विस्तार अथवा उसका दुरुपयोग कम हो सकता है। इसके विपरीत जब तक मानव जीवन में सुनियमों का पालन नहीं हो, तो दण्डनीति का हम कितना ही विस्तार क्यों न कर लें, समाज में शान्ति एवं सुव्यवस्था नहीं आ सकती ।
प्राचीन काल में वाहन वाले बिना वाहन वालों कों हेय दृष्टि से नहीं देखते थे, वरन् उनकी पद यात्रा के साहस को सराहनीय और प्रशंसनीय समझते थे, किन्तु आज धारणा बदल गई है और वाहन वाला पद-यात्री को निम्न स्तर का समझता है। आज के भौतिकवादी युग में यान्त्रिक वाहनों का बहिष्कार तो संभव नहीं फिर भी सद्भावना से मनुष्य साधनहीनों को अपना साथी बना सकता है। पूजनीय के प्रति सम्मान और नम्रता पहले के समान अब नहीं रही, क्योकि शिक्षणालयों में धर्म-शिक्षा के लिए कोई स्थान नहीं है।
__ आज मानव सादा कपड़ा, सात्विक भोजन एवं रहने को सुरक्षित मकान की जगह कीमती वस्त्र, तामसी भोजन और बड़ी बड़ी अट्टालिकाओं को आवश्यक मानता है तथा उनकी अप्राप्ति में दुखानुभव करता है। जैसे मकड़ी स्वयं अपने ही मुंह की तांत से उलझ कर अपना प्राण दे देती है, वैसे मानव अपनी वासनाओं की तांत में उलझ कर अपना अहित करने में भी नहीं हिचकिचाता और पशु-पक्षी तो क्या मानव तक की भी हत्या करने को तत्पर हो जाता है। • प्राचीन समय की बात है-चन्द्रगुप्त का प्रपौत्र तथा बिन्दुसार का पुत्र कुणाल उज्जयिनी में राज का उत्तराधिकारी मानकर रखा गया । जब उसकी उम्न आठ वर्ष की हुई तो सम्राट को खबर दी गई, ताकि राजकुमार की शिक्षादीक्षा के संबंध में उचित आदेश मिल सकें । सम्राट ने प्रत्युत्तर में लिखा-'अधीयतां कुमारः' । पत्र लिखकर राजा शारीरिक चिन्ता निवारण हेतु बाहर चले गये । इस बीच वह पत्र कुणाल की विमाता के हाथ लगा । उसने सोचा कुणाल बड़ा है अतः वही बडा होने पर राज्य का अधिकारी होगा तो मेरे पुत्र को राज्य नहीं मिलेगा। कोई उपाय करना चाहिये । बस क्या था, उसके मन में स्वार्थ ने आसन जमाया और पुत्र सुख के लिए 'अघीयता' पद के 'अ' पर बिन्दी लगा दी और “अधीयता" का "अंधीयता" कर दिया। केवल एक किन्दी लगाने से पत्र की भावना में आमूल परिवर्तन हो गया । पत्र उज्जयिनी भेज दिया गया।