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आध्यात्मिक आलोक यों तो पाप कर्म की निर्जरा और आत्म शुद्धि के लिए कोई समय निर्धारित नहीं किया जा सकता, किन्तु भूले-भटके लोगों को मार्ग प्रदर्शन करने हेतु आचार्यों ने पर्व की स्थापना की है, जो हर वर्ष जागरण का संदेश दे जाता है | संसारी आत्मा को आठ कर्म के बन्धन होते हैं, उसके अनुरूप साधनाएं भी आठ रख दी हैं। गुणों की साधना से ये कर्म के बन्धन कटते हैं । यह पर्वाधिराज आत्मा के आठ गुणों-दर्शन, ज्ञान, सामायिक, तप, दान, संयम, शुद्धि और अहिंसा की साधना का एवं आठ कर्मों के खपाने का पर्व है । अतएव इन आठ दिनों को अष्टानिक या लोकवाणी में अट्ठाई भी कहते हैं, जो प्रथम दिन में रूढ़ है।
जीवन को ऊपर उठाने के लिए ज्ञान की अत्यन्त आवश्यकता है । ज्ञान हीन नर संयम, साधना, व्रत और नियम के महत्व को समझ नहीं पाता किन्तु ज्ञान तब तक ज्ञान नहीं जब तक सम्यक् श्रद्धा-विश्वास नहीं हो । केवल जानना ज्ञान नहीं है। जानना तो प्राणी मात्र का स्वभाव है | जानने का गुण न हो, तो वह जीव ही नहीं है। मगर ज्ञान का मतलब है, सही विश्वास के साथ यथार्थ जानना । जिनका जानना गलत विश्वास के पाये पर है, या उल्टी दृष्टि पर है, उनका वह सब जानना अज्ञान है और व्यर्थ है । अतः ज्ञान का दर्शन या सम्यक्त्व से युक्त होना अत्यन्त आवश्यक है।
जैसे बांस में पर्व-पोर या गांठ का होना उसकी मजबूती का लक्षण है, वैसे ही जीवन रूपी बांस में भी यदि पर्व न होगा, तो जीवन पुष्ट नहीं होगा। जीवन-यष्टि की संधि में पर्व लाना, उसे गतिशील बनाना है। इससे साधना का वर्ष भी पर्व से दृढ़ होता है । अन्य पर्यों से विशिष्ट होने के कारण इसे पर्वाधिराज माना गया है । यह महापर्व वर्ष में एक बार आता है | अवस्थानुसार हर मनुष्य के अनेक पर्व बीत गए होंगे, किन्तु आज हमें यह सोचना है कि क्या हमें इसे आमोद-प्रमोद में ही बिता देना है, या इसमें सच्चा प्राण भी फूंकना है । यदि इसे सप्राण बनाना है या पर्वाराधन सही ढंग से करना है और सामाजिक एवं आध्यात्मिक बल बढ़ाना है, तो बच्चे और बूढ़े सभी में साधना की जान डालनी होगी । विषय कषाय को घटाकर मन के दूषित भावों को दूर भगाना, इस पर्व का पुनीत संदेश है। कवि लोग कहा करते हैं-"यह पर्व पजूसण आया सब जग में आनन्द छायाजी" इस तरह इस पर्व की महिमा का यह गान सहस्रमुख से भी होना संभव नहीं है।
इस परिम्भ के पूर्व आदिकाल में सूर्य की प्रखर किरणों के कारण भूमि पर जो जलन थी तथा भीषण गर्मी से जनता त्राहि-त्राहि कर रही थी, वहां वर्षा से र सब शीतलता कर अनुभव कर रहे हैं । चारों ओर से भूमि की ऊसरता दूर हो