________________
[२८] पर्व की आराधना
आज नये आध्यात्मिक-वर्ष का प्रवेश दिन है । यह नव-वर्ष हमारे लिए एक नूतन सन्देश लेकर आया है कि हम प्रमाद को छोड़कर, आत्म-कल्याण के पथ पर दृढ़तापूर्वक बढ़ते चलें तो असंभव नहीं कि मंजिल पर न पहुँच जायें । इतिहास साक्षी है कि जिन्होंने, पूर्ण उत्साह और लगन के साथ जीवन निर्माण के शुभलक्ष्य की ओर कदम बढ़ाया, वे उसे हासिल करने में सफल हुए।
अनेक विष विशेषताओं के होते हुए भी मानव में भूल का बड़ा स्वभाव है। वह सोचते-सोचते भी वस्तुस्थिति को भूल जाता है । और यही कारण है कि मानव जैसा श्रेष्ठतम जीवन पाकर भी वह इधर-उधर भटकता रहता है । माया का प्रभाव उसको मदिरा की तरह प्रमत्त बना देता है। इसी से पर कल्याण की क्षमता होते हुए भी, वह आत्मकल्याण के योग्य भी नहीं रह जाता ।
यदि मनुष्य अंतःकरण में वीतरागों के विचारों का चिन्तन करे, उनमें गहरी सुबकी लगावे, आत्म कल्याण के लक्ष्य पर ध्यान बनाए रहे और सदाचार में किसी प्रकार की आंच नहीं आने दे तो निश्चय ही उसका अन्तःकरण दिव्यभावों भरा चमत्कृत हो सकता है, किन्तु इसके लिए सच्ची साधना की अपेक्षा है, जो वैर, विरोध, ईर्ष्या और द्वेषादि दुर्गणों को मन से दूर कर उसे दिव्य बना सके । साधक संकल्प बल से सरलतापूर्वकं ऐसा कर सकता है । बाधा और विघ्नों से नहीं डरनेवाला यात्री लड़खडाते हुए भी मंजिल तक पहुँच सकता है । संकल्प की दृढ़ता, अदम्य पौरुष, उत्कट उत्साह, अटल निश्चय एवं अटूट लगन वाले लक्ष्य तक स्वयं ही नहीं पहुँचते, वरन् अपने पीछेवालों के लिए भी चरण छोड़ जाते हैं जिससे कि वे भी सरलता-पूर्वक 'अपना लक्ष्य प्राप्त करलें।