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आध्यात्मिक आलोक गरीबी के कारण तंग था, अतः अवसर का लाभ लेने की सोचने लगा । उसने रात्रि के समय कंठे पर हाथ फेरा और वहां से चल पड़ा । सेठजी ने जान लिया कि कंठा हाथ से जा रहा है फिर भी कुछ नहीं कहा । उनके मन में आया कि मैं लखपति और यह भूखपति है ।
इधर उस चुराने वाले व्यक्ति ने कठे को गिरवी रखकर व्यापार करना शुरु किया । धंधे में उसे अच्छा लाभ हुआ और कुछ ही दिनों में दश-बीस हजार रुपये कमा लिए । तो उसके मनमें विचार आया कि अव सेठजी की रकम लौटा देनी चाहिए । वह कंठा लेकर सेठजी के पास आया और बोला-"सेठ साहब ! उस दिन मेरी मति ठिकाने नहीं थी, इसलिए मैंने आपका कंठा उठा लिया था । अब आप अपना कंठा संभालिए और मुझे क्षमा कीजिए।" इस पर सेठजी ने कहा कि यह कंठा मेरा नहीं है, तूही ले जा । मैं गलती से तेरे जैसे भाई की ओर ध्यान नहीं दे सका, जिससे तुझे ऐसा करना पड़ा । वह बड़ा गदगद हुआ और नम्र शब्दों में बोला-"मुझे अधिक पाप में न डालिए ।" उसे श्रद्धा थी कि पाप बुरा है, इसलिए चुराया हुआ गुप्त माल भी उसने वापिस कर दिया ।
__ श्रद्धा की दृढ़ता न होने से ही मनुष्य अनेक देवी देव, जादू टोना और अंधविश्वास में भटकते रहते हैं। अगर सम्यग्दर्शन हो तो इधर-उधर चक्कर खाने की जरूरत नहीं होगी।
एक बार किसी सेठजी के यहां एक ठग आया और उसने सेठानी से कहा कि हांडी में जितना भी सोना और जेवर हो,रख दीजिए, मैं रातभर में मंत्र द्वारा दूना कर दूंगा। सेठानी ने लालचवश सब सम्पत्ति बटोर कर हंडी में रख दी । ठग ने भी कुछ तांबा मंगवाया और हंडी को चूल्हे पर रख कर कमरा बन्द कर दिया और अवसर देखकर रात में धन लेकर भाग गया । सेठानी ने सुबह ताला खुलवाया और हंडी को उघाड़कर देखा तो तांबा भरा था और मंत्रवादी का कहीं पता नहीं था । वह तो रात में ही नौ दो ग्यारह हो गया था । अंध श्रद्धा में पड़कर हजारों लोग इस प्रकार ठगाते हैं । यह सत् श्रद्धा के अभाव में सेठजी की स्थिति हुई । उन्होंने ठग की बात पर विश्वास कर लिया । इस प्रकार की बातों पर विश्वास के बदले यदि धर्म और गुरु पर श्रद्धा करें तो लौकिक और पारलौकिक दोनों जीवन सुधर जायेंगे।
पर्वाधिराज हमको आठ गुण प्राप्त करने की प्रेरणा देता है । इसके लिए प्रमाद छोड़ना होगा । क्योंकि प्रमाद साधना को नष्ट कर देता है । सैकड़ों साधक प्रमाद के कारण साधना के उच्चतम शिखर से नीचे गिर गए । निद्रा, विहार, वाणी