________________
119
आध्यात्मिक आलोक धर्म की प्रभावना की। पूर्ण त्यागी की कौन कहे, सर्व साधारण गुणवान व्यक्तियों का भी वे उचित सम्मान करते थे। सुदामा का उदाहरण संसार प्रसिद्ध है जिसके लिये रहीम कवि ने ठीक ही कहा है कि
जे गरीब पर हित करे, ते रहीम बड़ लोग ।
कहां सुदामा बापुरो, कृष्ण मिताई जोग ।। श्रीकृष्ण की सहनशीलता बड़ी प्रसिद्ध है। महामुनि भृगु ने एक बार उनकी सहनशीलता की परीक्षा लेने के लिये उनके वक्षस्थल पर लात मार दी। मगर इस घटना से वे आपे से बाहर नहीं हुए, उल्टे भृगु से पूछने लगे कि कहीं आपके मृदु चरणों में मेरे शरीर के द्वारा कुछ चोट तो नहीं आयी ? इससे भृगु शर्म के मारे पानी-पानी हो गये। उनकी क्षमाशीलता के लिये कहावत प्रसिद्ध है कि
क्षमा बड़न को उचित है, ओछन को उत्पात ।
कहां कृष्ण को घटि गयो, जो भृगु मारी लात ।।
आज हम क्षमाशीलता को बिल्कुल भूल गये हैं। आज का साधारण मनुष्य यह सोचता है कि राख बनने के बजाय अंगारे बनो, ताकि चींटी पैरों तले नहीं कुचले तथा तेज को देख कर हाथी भी डर जाय । श्री कृष्ण ने क्षमा का उत्तम आदर्श रखा । सचमुच कृष्ण की सहनशीलता अनुकरणीय है । आज दूसरों को झगड़ते देख मनुष्य उपदेश देता है किन्तु स्वयं सहनशीलता को जीवन में नहीं अपनाता, संयम और विवेक से काम नहीं लेता। - श्री कृष्ण का बाल्यकाल ग्राम के प्राकृतिक वातावरण में बीता। गरीबों तथा पशुओं से प्यार करना उनका प्रमुख दृष्टिकोण रहा। अमीरी पाकर वे अहंभाव से नहीं भरे, पशु-पालन, पौरुष और सेवा आदि सद्गुण उनके महामहिम जीवन की विशेषता थी। आपका सेवाव्रत जन-जन में प्रसिद्ध है। श्री कृष्ण चन्द्र जी त्रिखण्ड का अधिनायक पद पाकर भी- गरीबों की सेवा करना नहीं भूले। एक बूढ़े ब्राह्मण की सहायता में उनका ईंट उठाना जगत प्रसिद्ध है। आज तो सेवा प्रदर्शन की वस्तु बन गयी। कुर्सी के नीचे का कचरा नहीं टलता और लोग जनसेवी होने का स्वांग रचते और ख्याति के लिये फोटो तक खिंचवाते हैं।
श्रीकृष्ण की गुणग्राहकता, दयालुता, अपक्षग्राहिता, लोकोपकारिता और आत्मीयता सराहने योग्य है। मनुष्य की तो बात ही क्या ? पशु-रक्षा एवं पशुपालन उनकी दयालुता के ज्वलन्त उदाहरण हैं। जिसके चलते आज तक लोग उनको गोपाल नाम से भी पुकारा करते हैं, यदि श्री कृष्णचन्द्रजी आज का पशु-संहार देखें, तो