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आध्यात्मिक आलोक ऋषि-मुनियों के चरणों में शेर चीते शान्ति से पड़े रहते थे । खादी वाले जैन संत श्री गणेशीलाल जी म० के पास भी कहते हैं कि सांप बैठा रहता था । म० गांधीजी की कुटिया में एक बार सर्प निकल आया । सब लोग भाग गये पर गांधीजी बैठे रहे। सांप शान्तिपूर्वक उनके चरणों के पास से निकल गया । फ्रांस के एक महात्मा पशु पक्षियों के बड़े दुलारे थे। उनके नाम परं आज भी ४ ता० को प्राणी-दिवस मनाया जाता है। महात्मा गांधी ने सम्मान देने के प्रतीक फूल-माला की जगह सत की आटी, माला के रूप में पहनाने की प्रथा चाल की थी। इससे बनस्पति जगत की व्यर्थ हिंसा का बचाव होता तथा वस्त्र के लिये सूत भी बचने लगा ।
आज धर्म और कानून की उपेक्षा कर मनुष्य व्यर्थ की हिंसा बढ़ा रहा है। फलतः देश का पशुधन और शुद्ध भोजन नष्ट होता जा रहा है । एक ओर वन-रक्षण एवं वन्य पशु-पक्षी रक्षण के कानून बनते है और दूसरी ओर हजारों की संख्या में उनका निरपेक्ष विनाश होता है । सचमुच में यह बुद्धिमत्ता नहीं है ।
ज्ञान का सार विरति है। आनन्द श्रावक ने ज्ञानपूर्वक विरति धारण कर अपनी इच्छाओं को सीमित किया। सम्यक् दृष्टि होने के कारण उसके और एक साधारण जन के भोग में कुछ विशेष अन्तर नहीं था। भोगी मनुष्य भोग में अपने को डुबा लेता है और वह कभी भी उससे बाहर निकलना नहीं चाहता। किन्तु भौंरा एक फूल से दूसरे फूल में विचरण कर रसपान करता है। मधुमक्खी फूलों का रस लेकर उड़ जाती है। वह रस का कण-कण ग्रहण करती है, फिर भी बन्धन में नहीं रहती। दूसरी मक्खी नाक के मल में बैठकर उसमें फंस जाती है । मनुष्य को मधु-मक्खी की तरह बनना चाहिये किन्तु मल ग्रहण करने वाली मक्खी के समान नहीं। भोग-सुख को छोड़ने वाला त्यागी छोड़ते हुए सुख का अनुभव करता है, जबकि बिना मन भोग के छूटने पर अतिशय दुख होता है । अब वररुचि की बात सुनिये
पण्डित वररुचि को आठ श्लोक सुनाने पर नित्य दरबार में आठ मुहरें मिलती थीं । उसे लोभ ने आ घेरा और शकटार के कारण उसे इस लाभ से वंचित होना पड़ा । अतएव वररुचि का महामन्त्री शकटार के प्रति कुपित होना स्वाभाविक था । वररुचि लड़कियों की श्लोक सुनाने की प्रतिमा से अतिशय प्रभावित हुआ । यदि हिप्नोटिज्म या जादू से ऐसा कार्य होता, तो उसे दुःख नहीं होता । पर, लड़कियां स्वयं स्मृति से सब श्लोक सुना गयीं, यह उसके लिये चिन्ता और आश्चर्य का विषय था । लड़कियों में सुसंस्कार डालने वाली माता लाछल दे सचमुच प्रशंसनीय थी । काश ! भारत में आज भी ऐसी नारियां होती तो देश की दशा ही कुछ और होती।