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आध्यात्मिक आलोक • जड़ वस्तु पर प्रभुता जमाने या उन्हें स्ववश में करने के लिए ही साधना की जाती है । साधक आनन्द ने भोग-विलास तथा अन्य कामनाओं पर सचमुच ही नियंत्रण कर लिया । अतएव वह संसार में स्मरणीय एवं वन्दनीय बन सका। कहा भी .
आशाया दासाः, ते दासाः सकल लोकस्य । आशा येषां दासी, तेषां दासायते सकला-जनाः ।।
अर्थात् जो आशा का दास है, वह सारे संसार का दास है । और जिसने आशा पर विजय प्राप्त कर ली , उसके लिए सारा संसार ही दास है।
इन सबके बाद आनन्द ने आभरण विधि का परिमाण किया । आमरण खासकर प्रदर्शन की वस्तु है । लोग सुन्दर आभूषणों से लोक दर्शकों का आकर्षण करते हैं। देश की सम्पन्न दशा में भले ही आभूषण धारण करना, उतना अहितकर नहीं रहा हो; पर आज की स्थिति में आभूषण, जनमन में विविध प्रकार की विकृतियां उत्पन्न करने वाला ही प्रमाणित हुआ है । सर्वप्रथम तो आभूषण-धारण से दर्शकों के मन में ईर्ष्या और लालसा जागृत होती है; दूसरे में संग्रह और लोभवृत्ति का विकास होता है । वासना जगाने का भी आभूषण एक महान कारण माना जाता है । वस्त्राभूषणों से लदकर चलने वाली नारियां अपने पीछे आंखों का जाल बिछा लेती हैं और स्थिर प्रशान्त मन को भी अस्थिर एवं अशान्त कर देती हैं। विशेषज्ञों का कथन है कि नारी का तन जितना रागोत्पादक नहीं होता, ये वस्त्राभूषण उससे अधिक राग-रंगवर्द्धक होते हैं। यही कारण है कि आदिम-समाज़ में, जबकि वस्त्राभूषणों का रीतिरिवाज नहीं था आज की अपेक्षा वासना का उभार अत्यन्त कम था । समाज में जब से यह प्रथा जोर पकड़ती गई है, विकार का बल बढ़ता गया है ।
___ आभूषण धारण करने वाले यद्यपि दर्शक को कुछ नहीं कहते, तथापि उनका प्रदर्शन दर्शक की भावना को उभारने में निमित्त तो जरूर बनता है .। यदि सादा वस्त्राभूषण हो तो दूसरों में सादगी का आदर्श उपस्थित करेगा और लोभजन्य ईर्ष्या की मात्रा कम रहेगी । वस्त्राभूषणों की तरह सादगी का भी असर कुछ कम महत्व । वाला नहीं होता । राजमहल का विराट वैभव प्रदर्शन यदि दर्शकों को अपनी ओर आकृष्ट करता है तो एक सादी-पावन कुटिया भी चित्त को चकित किये बिना नहीं . रहती।
आनन्द ने अपनी नामांकित मुद्रिका और कुण्डलों के अतिरिक्त अन्य सभी आभूषणों का त्याग कर दिया । इस तरह सादगी अपना कर उसने समाज धर्म को .