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आध्यात्मिक आलोक
___121 वृत्ति नहीं होती, तो ऐसे महान् एवं पवित्र कार्यों की और वे प्रवृत्त नहीं होते। उनका चरित्र, उनका व्यवहार एवं उनकी आदर्श वृत्तियां इसका सबूत है कि मनुष्य-जीवन मात्र आमोद-प्रमोद एवं विलास के लिये नहीं अपितु जीवन को आदर्श, उज्ज्वल और अनुकरणीय बनाने के लिये है । अपने सत्कर्मों के द्वारा मनुष्य नर से नारायण बन सकता है। यह श्रीकृष्ण के जीवन-वृत्त से भली-भाति हृदयंगम किया जा सकता है। यदि श्री कृष्ण के गुणों को ग्रहण करें तो मानव दानव नहीं बन कर अमरत्व-देवत्व का उच्च, अभिलषित पद पा सकता है।
मानव जीवन भोग-प्रधान नहीं, साधना-प्रधान और सुकर्म-प्रधान है । यदि हम ज्ञान, साधना और त्याग, तप का जीवन बितायेंगे, तो जीवन में आनन्द मिलेगा तथा लोक परलोक दोनों में कल्याण होगा।