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आध्यात्मिक आलोक आजकल के उद्योगपति धन प्राप्त करने के लिये नवीन-नवीन डिजाइन (ढंग) के कपड़े निकालते रहते हैं। रंगीन कपड़े आजकल अधिक पसन्द किये जाते हैं। इनमें चालबाजी भी चलती है। आज का मानव धन का इतना गुलाम बन गया है कि उसके लिये वह नैतिकता और प्रामाणिकता को भी भुला देता है। किन्तु आनन्द ने वस्त्र धारण का उद्देश्य प्रदर्शन और विलास नहीं माना उसने शीतातप से शरीर रक्षा एवं लज्जा निवारण मात्र ही वस्त्र धारण का उद्देश्य समझा। रेशमी वस्त्र में जीव हिंसा होती है जो सूती वस्त्र में नहीं होती। अतः हिंसक रेशमी वस्त्र का आनन्द ने त्याग किया। कुछ लोग जीव हिंसा वाले रेशमी वस्त्र को पवित्र तथा सूती वस्त्र को अपवित्र मानते हैं । इस विलक्षण कल्पना के मूल में सम्भवतः रेशमी वस्त्र में बिजली का असर होने से रोगाणु का असर कम होने की धारणा का असर होना सिद्ध होता
__ आनन्द के जमाने में एक वस्त्र पहनने एवं एक के ओढ़ने का रिवाज था। बिहार एवं बंगाल में आज भी लोग खुले शिर रहते और पछेवड़ा (चादर) ओढ़ कर चलते हैं। पगड़ी तो समय विशेष पर ही धारण करते हैं। भगवान् महावीर ने अन्न-जल की तरह अल्प वस्त्र धारण करने को भी तप कहा है। मनुष्य यदि अधिक संग्रही बनेगा, तो उससे दूसरों की आवश्यकता पूर्ति में कमी आयेगी। फलस्वरूप आपस में बैर-विरोध तथा संघर्ष की स्थिति उत्पन्न होगी। संग्रही पुरुष को रक्षण की उपधि और ममता का बन्धन रहेगा, जिससे वह शान्तिपूर्वक गमनागमन नहीं कर सकेगा। अतः व्रती को सादे जीवन का अभ्यास रखना चाहिये। धार्मिक स्थलों में खासकर बहुमूल्य वस्त्र और आभूषणों को दूर ही रखना चाहिये, क्योंकि धर्म स्थान में धन वैभव का मूल्य नहीं, किन्तु साधना का महत्व है।
पुराने समय की बात है, एक बार एक राजा अपने मन्त्री के साथ बैठा विनोद कर रहा था । राजा ने मन्त्री से पांच प्रश्न पूछे। पहला प्रश्न था कि रोशनी किसकी अच्छी ? दूसरा प्रश्न दूध में कौनसा दूध अच्छा ? तीसरा प्रश्न-पूत किसका अच्छा ? चौथा प्रश्न बल किसका अच्छा ? और पांचवां प्रश्न-फूल कौनसा अच्छा ? मन्त्री ने खूब सोच समझ कर उत्तर दिया । १. "रोशनी सूर्य की अच्छी” ग्रह-नक्षत्र, चन्द्र और प्रदीप की रोशनी इसके सामने कुछ भी नहीं । २. दूध गौ का अच्छा, क्योंकि वह पौष्टिक भी है और नीरोग भी । ३. पूत राजा का अच्छा, जो हजारों का पालन कर सके। ४. बल भाई का अच्छा, जो समय पर सहायता दे । ५ फूल गुलाब का अच्छा, जिसमें रूप भी है और खुश्बू भी। नीचे छाया में एक गड़रिया उनकी बातें सुन रहा था। उसको मन्त्री के उत्तर अच्छे नहीं लगे। और वह सबसे पीछे चलने वाली लंगड़ी बकरी को यह कहते हुए वहां से चल पड़ा कि “चल