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आध्यात्मिक आलोक की ओर अधिक ध्यान लगावे तो ऐसे सद्गुणियों का समाज में आदर होना चाहिए । महामात्य शकटार की पत्नी लाछलदे ने अपनी सातों कन्याओं तथा दोनों पुत्रों स्थूलभद्र तथा श्रीयक पर बचपन से ही सुन्दर संस्कार डाले थे । फलतः उनका भविष्य उज्ज्वल बना।
प्रजापति गीली मिट्टी के पिण्ड से विभिन्न रूपों का निर्माण करता है । कारीगर अपनी कला का रूप गीली मिट्टी के पिण्ड पर ही बता सकता है । सूखी मिट्टी के पिण्ड से रूप निर्माण नहीं होता । एक कुशल कारीगर या प्रजापति की तरह कोमल अवस्था में यदि माता-पिता सुसंस्कार के चाक पर बच्चों को चढ़ावें तो उनका जीवन निश्चय ही सुसंस्कृत हो सकता है । यदि पुत्र को सुसंस्कृत न बनाया जाय तो सिर्फ एक घर की हानि होगी किन्तु यदि बालिका में सुसंस्कार नहीं दिए जायं तो पितृघर और श्वसुरघर दोनों को धक्का लगेगा तथा भावी संतानों पर भी कुप्रभाव पड़ेगा। जो बालिका कुसंस्कार लेकर ससुराल जायेगी, वह वहां भी कुसंस्कार का रोग फैलायेगी । अतः लड़के की अपेक्षा लड़की की शिक्षा पर माता-पिता को अधिक ध्यान देना आवश्यक है।
' प्राचीन काल के पुरुषों ने स्त्रियों की मर्यादा का पाठ पढ़ाकर समाज का बड़ा उपकार किया है । उनके लिए पक्षपात की बात कह कर स्त्री जाति के प्रति उनकी सद्भावना और सम्मान बुद्धि पर लांछन लगाना उनके सदविचारों को गलत रूप में समझना है। मनुष्य बहुमूल्य हीरे-जवाहरातों को अधिक सुरक्षित रखता है वैसे ही हीरे-जवाहरातों से भी अधिक बेशकीमती स्त्रियों की सुरक्षा का प्रबन्ध क्या उनके आदर का सूचक नहीं है ? लाछलदे ने बहुमूल्य जवाहरातों से भी बढ़कर अपनी पुत्रियों की सुशिक्षा एवं रक्षा की और ध्यान दिया । साथ ही पुत्रों की शिक्षा पर भी कुछ कम ध्यान नहीं रखा । उन्हें सभी विद्याओं में मसम्पन्न किया । महामन्त्री शकटार ने पुत्रों को धनुर्विद्या, राजनीति, अर्थनीति, ज्योतिष, ब्रह्मज्ञान आदि सिखाने का उचित प्रबन्ध किया। चौदहों विद्याओं का निरूपण एक कवि ने अपनी कविता में अच्छी तरह किया है, जो इस प्रकार है :
राग रसायण नृत्य गीत, नटबाजी, वैद्या, अश्व चढ़न व्याकरण पुनि, जानत ज्योतिष अंग । धनुष बाण, रथ हांकवो, चित चोरी ब्रह्मज्ञान,
जल तिरवो, धीरज वचन, चौदह विद्या निधान ।। उस समय पाटलिपुत्र में रूपकोषा नाम की एक विख्यात वेश्या थी । अपने • रूप और गुणों के कारण वह नगर-नायिका मानी जाती थी। उसके रूप लावण्य की