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आध्यात्मिक आलोक
विदेशों से आने वाले टूथ पाउडर और बहुमूल्य लिक्विड में हिंसा अधिक होती है । आनन्द ने दन्तशुद्धि के लिए केवल गीली मुलेठी की लकड़ी की छूट रखकर शेष का त्याग कर दिया ।
(३) फल विधि - आनन्द ने सिर की स्वच्छता के लिए आमले के अतिरिक्त अन्य वस्तुओं के उपयोग पर रोक लगादी। क्योंकि साधक को चाहिए कि वह कम से कम हिंसा वाली वस्तु का उपयोग करे । आज कई व्यक्ति कम्पनी विशेष की वस्तु नहीं मिलने से बहुत उद्विग्न हो जाते हैं, यह बड़ी पराधीनता है । आज का मनुष्य जड़ वस्तुओं के अधीन होकर दिनोंदिन परमुखापेक्षी होता जा रहा है, जो लज्जा की बात है । वास्तव में मनुष्य की श्रेष्ठता और उच्चता इसी में है कि वह किसी वस्तु के अधीन नहीं हो, बल्कि वस्तुओं को अपने अधीन बनाए रखे ।
करोड़पति आनन्द ने अपनी इच्छाओं को घटाने में आनन्द प्राप्त किया । उसे यह दृढ़ विश्वास था कि इच्छा की बेल को जितना अवसर दिया जाएगा वह बढ़कर उतना ही अधिक दुःख बढाएगी । अतएव उसने इच्छाओं का परिमाण किया और इससे उसको बड़ी शान्ति प्राप्त हुई । जिस प्रकार बिना मजबूत पाल ( बंधान ) के जलाशय का पानी निकल कर सर्वनाश कर बैठता है वैसे ही बिना व्रत के मानव-जीवन भी विनष्ट हो जाता है । जहां सदाचार का बल है, वहां नूर चमकाने के लिये बाह्य उपकरणों की आवश्यकता नहीं होती । बाह्य उपकरण क्षणिक हैं, वास्तविक सौन्दर्य तो सदाचार है । यदि वस्तुओं के उपयोग में नियम नहीं होगा, तो मन वस्तुओं की प्राप्ति के लिए चंचल एवं दुःखी होगा । सद्गृहस्य अपरिमित वस्तुओं का उपभोग नहीं करता । वह भोगोपभोग का गुलाम नहीं बनता वरन् उनको अपने वश में रखता है । यही श्रावक धर्म का स्वरूप है ।
अब स्थूलभद्र की बात करते हैं ।
महामन्त्री शकटार के पुत्र स्थूलभद्र के दिल पर स्नेह की बेड़ी पड़ी है, अतएव वह रूपकोषा के घर से बाहर नहीं जा पाता । उसने एक-एक कर बारह वर्ष रूपकोषा के स्नेह-सूत्र में बँध कर बिता दिए । शकटार अब सोचने लगे :
" बिना विचारे जो करे, सो पाछे पछताय । काम बिगारे आपनो, जग में होत हंसाय || जग में होत हंसाय, चित्त में चैन न पावे । खान पान सम्मान, राग रंग मनहु न भावे ।।”
गणिका से शिक्षा ग्रहण कर स्थूलभद्र के घर न लौटने से मन्त्रीवर के
हृदयाकाश में चिन्ताओं के बादल उमड़ने लगे । वे सोचने लगे कि वैश्या के घर में