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आध्यात्मिक आलोक लेकर वापिस आता है, उसी प्रकार उच्च कुलवान और सुसंस्कृत व्यक्ति निम्न कुल में असंस्कृत जनों के बीच जाकर भी कुछ मनचाहा ज्ञान-रत्न लेकर आता है, मगर गंवाता कुछ भी नहीं । महामन्त्री शकटार का भी यही उद्देश्य था कि स्थूलभद्र गणिका रूपकोषा से जो उस समय की अनिन्द्य सुन्दरी और चतुर थी, चातुर्य कला सीखकर यथा शीघ्र घर लौट आवे, किन्तु यहां तो स्थिति ही दुसरी हो गई । कहा भी है-"आये थे हरिभजन को ओंटन लगे कपास ।" स्थूलभद्र की प्रीति अपनी मर्यादा को छोड़कर मोह के रूप में परिणत हो गई । अब उन्हें रूपकोषा का साथ छोड़ना असंभव प्रतीत होता था । उनकी आंखों में हरदम रूपकोषा की मूर्ति नाचती रहती थी; वे अब इस कल्पना से सिहर उठते थे कि कभी रूपकोषा से अलग भी होना पड़ेगा। उन्हें सोते-उठते-बैठते रूपकोषा की याद बनी रहती थी । वस्तुतः रूपकोषा की रूप वारुणी से स्थूलभद्र का तन-मन बेभान हो गया था ।
प्रीति यदि मोह का रूप ले ले तो साधक के लिए गिरावट का कारण बन जाती है । रूपकोषा के साथ जो स्थिति स्थूलभद्र की हुई वैसी ही कुछ परिस्थिति बिल्वमंगल की भी हुई थी। बिल्वमंगल का प्रेम जब चिन्तामणि नाम की वेश्या से हो गया तो वह अपना होश-हवाश ही गंवा बैठा | और तो क्या ? वह अपनी नव-विवाहिता पत्नी से भी संभाषण नहीं कर पाया एवं अपने पिता से अन्तिम समय भी नहीं मिल सका । पिता के स्वर्गवास हो जाने पर वेश्या को कहना पड़ा कि जाकर अपने पिता का क्रिया-कर्म तो करो।
किसी तरह अनिच्छा से, चिन्तामणि की फटकार पर पितृकर्म के लिए बिल्वमंगल घर गया तो जैसे-तैसे कर्म समाप्त कर, वर्षा ऋतु की अन्धेरी रात में ही वह वेश्या के घर लौट पड़ा। मार्ग में नदी पड़ती थी जिसको पार करने के लिए मर्दै को नौका समझ कर उस पर सवार हो, वह नदी पार हुआ । भवन के पास पहुँच कर, सर्प को रस्सी समझ कर, उसी के सहारे वह चौक में कूद पड़ा । चिन्तामणि बिल्वमंगल के इस दीवानेपन पर दंग रह गई। उसके मुँह से सहसा निकल पड़ा
जैसा चित्त हराम में, वैसो हरि सों होय ।
चल्यो जाय बैकुण्ठ में, पल्लो न पकड़े कोय ।। बिल्वमंगल ने चिन्तामणि को अपना गुरु माना और उसकी मीठी फटकार से . प्रभावित हो कर वह हरिभक्त बन गया । यह एक आश्चर्य का विषय है कि एक अटल वेश्या-भक्त जीवन में मोड़ आने से, हरिभक्त के रूप में बदल गया । मोह छूट जाने से ही वह हरिभक्त बन सका । यदि आप सब भी इसी प्रकार मोह का परित्याग करेंगे, तो अपना कल्याण कर सकेंगे।