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आध्यात्मिक आलोक दुसरा मार्ग अपूर्ण त्याग वाला गृहस्थ जीवन का है । इसे श्रावक धर्म भी कहते हैं। इसका पालन हर एक व्यक्ति कर सकता है, चाहे वह वकील, जज, कृषक, उद्योगपति, श्रमजीवी मजूदूर या कोई भी धन्धा करने वाला क्यों न हो ? गृहस्थ धर्म के पालन के लिए सुदृष्टि अपेक्षित है । वह पुण्य पाप, जीव-अजीव, खाद्य-अखाद्य और करणीय अकरणीय के भेद को भली भाति समझे, यह आवश्यक है।
जीव का स्वभाव है चेतना शक्ति से युक्त होना । एक छोटे से छोटे कीट से लेकर कुंजर तक सभी प्राणियों में चेतना वेदन करने की शक्ति है और सभी का जीव समान है। पूरे कमरे को प्रकाशित करने वाले दीपक को यदि छबड़ी से ढांक दिया जाय तो वह छबड़ी की परिधि तक ही प्रकाश देगा, जो पहले पूरे कमरे को प्रकाश दे रहा था । यदि उससे भी छोटे पात्र से उसे ढांक दें तो उसके भीतर तक ही प्रकाश फैलेगा । और यदि उसी दीपक को द्वार पर रख दें, तो दूर तक भीतर एवं बाहर प्रकाश फैला देगा।
दीपक की रोशनी विभिन्न स्थितियों में बड़ी छोटी नहीं हुई, किन्तु उसमें विस्तार तथा संकोच होता रहा । ऐसे ही जीव की चेतना भी बराबर है, केवल उनके शरीर की आकृति के अनुसार चेतना का विस्तार न्यूनाधिक परिमाण में होता है । बच्चा मां के पेट में छोटे आकार में रहता है, मगर बाहर आते ही वह धीरे-धीरे बड़ा होने लगता है और एक दिन पूर्ण बड़ा हो जाता है । उसकी चेतना वाणी के द्वारा प्रस्फुटित होती है । मस्तक से लेकर पैर तक शरीर के सभी भागों में उसे चोट का या स्पर्श का ज्ञान होता है । इससे सिद्ध है कि चेतना शरीर के किसी एक भाग में नहीं, बल्कि सम्पूर्ण शरीर में है । अतः कड़ी से लेकर कुंजर तक सभी में जीव समान है और सब के साथ प्रेमभाव रखना हर मानव.का कर्तव्य है।
जिस व्यक्ति में विवेक का प्रकाश फैल जाता है, चाहे वह राजा है या रंक अथवा किसी भी स्थिति का हो, श्रावक धर्म का पालन कर सकता है। यदि किसी व्यक्ति ने प्रपंच नहीं त्यागा, संयत जीवन नहीं बनाया, जीने की दिशा में कोई सीमा नहीं निर्धारित की, तो वह सर्व-विरति या देश विरति-श्रावक धर्म का साधक नहीं बन सकता । केवल मन को जागृत करने की आवश्यकता है । फिर हर एक साधक, साधना के क्षेत्र में आगे बढ़ सकता है। .
आनन्द ने तीसरे व्रत में स्थूल अदत का त्याग कर दिया | उसका जीवन बहुत प्रामाणिक एवं विश्वस्त था । वह चाहे राजा के भण्डार में अकेले भी चला जाता तो उसका कोई अविश्वास नहीं करता, क्योंकि वह प्रामाणिक और त्यागी था।