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आध्यात्मिक आलोक
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धर्म व्यवस्था से मनुष्य का मन मजबूत होता है । धार्मिक जन का त्याग शुद्ध मन से होता है, भय या परवशता से नहीं । बहुत से मनुष्य हिंसा, कुशील, चोरी आदि महापापों को राजदण्ड के भय से और कुछ यमदण्ड से भी त्याज्य मानते हैं, परन्तु ज्ञानी सद्गृहस्थ आत्मा को मलिन बनाने वाले पाप कर्मों को बुरा समझकर उनका त्याग करता हैं ।
धार्मिक जीवन मनुष्य के मन को निर्मल व महत्वपूर्ण बनाता है । पाप के प्रति मन में घृणा के भाव हों और सद्गुणों के प्रति अनुराग, तो अनायास ही पाप मन में नहीं आवेगा और घड़ी आध-घड़ी के लिए कदाचित् आ भी जाय तो वह अधिक समय तक मन के भीतर नहीं ठहर सकेगा । ऐसी स्थिति में मन पूर्ण चन्द्र की तरह दिव्य आभा से आलोकित हो उठेगा ।
आज तो घृणा का दृष्टिकोण भी बदला हुआ दिखाई देता है । समाज में बहुत से ऐसे लोग हैं, जो हरिजनों, शूद्रों या निम्न जातियों के लोगों से तो घृणा करेगें और उनकी छाया तक से बचेंगे मगर मैला से बने खाद एवं नालियों के गंदे पानी से पैदा होने वाली साग-सब्जियों से जो कि उन्हीं गंदे जनों के द्वारा उपजाई गई हैं, कोई घृणा नहीं करेंगे, वरन् मौसम के समय ऐसी सब्जियों व फलों को बड़े चाव से ग्रहण करेंगे । पाप एवं बुराई से घृणा नहीं करेगे । अजीब तमाशा है । एक ओर जहां घृणा नहीं करनी चाहिए, वहां घृणा करते हैं और जहां करनी चाहिए वहां नहीं करते हैं ।
ज्ञानी जन पाप से घृणा करते हैं जैसे कोई कै और मल के स्पर्श से परहेज करता है, किन्तु पापी से नहीं । कारण पापी घृणा का नहीं, किन्तु दया का पात्र है | आज का पापी कल सुधर सकता है । अज्ञानतावश कोई बुरे कर्मों में उलझता है । साधु या सद्गृहस्थ का कर्तव्य है कि प्रेम से उसका मार्ग दर्शन करे तथा बुराई से उसको बचावे । धर्म नीति की यही विशेषता है कि वह हृदय परिवर्तन कर मानव का दृष्टिकोण ही बदल देती है ।
आज के धर्म विहीन देश एवं समाज भौतिकता के प्रभाव में धर्म की महिमा भूल रहे हैं । किन्तु उन्हें याद रखना चाहिए कि इसमें वे धोखा खा रहे हैं । इतिहास साक्षी है कि भौतिकता के उन्माद में हजारों वर्षों से मानव सुन्दोपसुन्द न्याय से सुख शान्ति प्राप्ति के लिए लड़ रहा है, पर उन्हें आज तक प्राप्त नहीं कर सका । हर देश की जल, थल एवं नभ की सीमा निर्धारित की जा चुकी है फिर संघर्ष की ज्वाला क्यों उठ रही है ? इसका उत्तर साफ है कि आज के जन-जीवन में धर्म नहीं और याग नहीं । धर्म साधना के लिए समाज में सन्दर परम्पराएं डाली