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आध्यात्मिक आलोक सेनापति के समान अन्य सब व्रतों में अधिक महत्वशाली है । इसकी रक्षा के लिए नव नियम नव बाड़ के रूप में बतलाए गए हैं । यह अन्य व्रतों का रक्षक है। जैसे दीपक तेल बिना बुझ जाता है, वैसे ही शरीर का तेल अधिक जलाया गया तो जीवन दीप भी शीघ्र ही बुझ जाएगा ! अल्पायु में मृत्यु का एक कारण अधिक मैथुन, एवं आहार-विहार का असंयम भी है । सदाचार के महत्व को समझने वाला गृहस्थ, ब्रह्मचर्य का हमेशा पूर्ण पालन करेगा ।
कुशील सेवन करने वाले, वीर्य हानि के साथ असंख्य कीटाणुओं के नाश रूप हिंसा के भी भागी बनते हैं । ब्रह्मचर्य की चोरी करने वालों को प्रकृति के घर से सजा होती है और इसी के कारण आज रोगियों की संख्या अधिक हो रही है। जिन्होंने गृहस्थ जीवन में प्रवेश किया है या प्रवेश करने वाले हैं, उन्हें इन बातों का गम्भीरतापूर्वक मनन करना चाहिए। यदि ब्रह्मचर्य रूप दवा का सेवन किया जाय तो सहज में डाक्टरों के चक्कर में नहीं पड़ना पड़ेगा और शरीर भी सदा स्वस्थ बना रह सकेगा।
सदाचार में प्रमुख बाधक तत्व आहार विहार की खराबी है । चाय, पान, सिनेमा के अश्लील चित्र, नशीली वस्तुएं आदि उत्तेजक उपकरणों ने सदाचार को बिगाड़ रखा है । ब्रह्मचर्य मानव का एक स्वाभाविक गुण है और कदाचार बाहर से
आया हुआ एक अस्वाभाविक तत्व है । जानी हुई बात है कि दुराचारियों की सन्तान भी दुराचारी बन जाती है ।
इस प्रकार दुराचारी व्यक्ति आत्म गुणों को ही नष्ट नहीं करता, वरन् भावी पीढ़ी को बिगाड़ कर समाज के सामने भी गलत उदाहरण प्रस्तुत करता है । अतएव कहा है -"शीलं परं भूषणम्" अर्थात् सोने चांदी आदि के आभूषण एवं वस्त्रादि ब्राय सजावट की वस्तुएं वास्तविक आभूषण नहीं हैं, किन्तु शील ही मानव का परम आभूषण है । सदाचारी व्यक्ति कभी ठगाता नहीं और प्रगति पूर्वक अपने पथ पर आगे बढ़ता है।
समझ आ जाने के बाद मनुष्य के लिए बुराई का त्याग कोई कठिन कार्य नहीं है, केवल मन की दुर्बलता हटाकर सदाचार पालन की भीष्म प्रतिज्ञा लेनी पड़ेगी । गागेय-भीष्म के कामना-नियन्त्रण का दृष्टान्त संसार से छिपा नहीं है । भीष्म ने अपने पिता शान्तनु के सुख के लिए आजीवन ब्रह्मचर्य पालन की भीष्म प्रतिज्ञा की । क्योंकि शान्तनु की इच्छा पूर्ति के लिए सत्यवती के पिता धीवर ने कहा कि . सत्यवती की संतान ही राज्याधिकारी हो, वह इसी शर्त पर अपनी बेटी दे सकता है। पिता की मनस्तुष्टि के लिए गागेय ने आजीवन ब्रह्मचारी बने रहने का व्रत ले