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आध्यात्मिक आलोक हो जाता है । प्रभु की वाणी से प्रभावित हो जहां लाखों ने श्रावक धर्म ग्रहण किया, वहां हजारों पूर्ण त्यागी श्रमण भी हो गए थे । उसमें से एक थे महामुनि भद्रबाहु । वे चौदह पूर्व (एक प्रकार का उत्कृष्ट आध्यात्मिक ज्ञान ) के ज्ञाता थे। एक बार वे साधना के लिए नेपाल की तराई में गए हुए थे । उस समय जैन संघ का सन्देश लेकर दो सन्त उनकी सेवा में पहुँचे कि ज्ञान की सुरक्षा के लिए एक बार आप स्वदेश पधारें । भद्रबाहु ने नम्रता पूर्वक उन सन्तों से कहा कि मैं महाप्राण ध्यान की साधना प्रारम्भ कर चुका हूँ। अतःएव आने की स्थिति में नहीं हूँ।
जैन संघ को उनके सन्देश से बड़ा खेद हुआ । सन्त दुवारा उनके पास भेजे गए और उनसे पुछवाया गया कि यदि कोई संघ की आज्ञा न माने तो उसे क्या कहा जाय ? भद्रबाहु ने इस प्रश्न का लक्ष्यार्थ समझ लिया और बोले :-"वह बहिष्कार करने योग्य होगा । संघ जो आज्ञा देगा, मुझे शिरोधार्य होगी ।"
___ व्यक्ति के जीवन निर्माण में संघ समाज का भी बड़ा हाथ है । इसीलिए मनुष्य को सामाजिक प्राणी कहा जाता है । समाज की आज्ञा टालने वाला अकृतज्ञ (कृतघ्न ) है, यह जानकर महामुनि ने सन्देश दिया कि मैं आने में विवश हूँ किन्तु यहां साधुओं को सात वाचनाएं ( आध्यात्मिक पाठ ) दे सकता हूँ। मुनि भद्रबाहु के उत्तर में विनय और विवशता का समावेश था । अतः संघ ने ज्ञान सुरक्षा की दृष्टि से कुछ सन्त चुनकर उनकी सेवा में भेजे. और श्रुतज्ञान का रक्षण करवाया, जिसके आधार पर आज भी हम सब धर्मा-धर्म समझकर साधना पूर्ण जीवन बिताने में . समर्थ होते हैं । इस प्रकार जो भी श्रुत सेवा करेगा उसका कल्याण होगा ।