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आध्यात्मिक आलोक स्थूल चोरी के भी भगवान महावीर स्वामी ने पांच प्रकार बतलाए हैं-जिनसे बचने का आदर्श हर गृहस्थ के समक्ष होना चाहिए । वे इस प्रकार हैं
१ सेंध मारना-दीवारों में छेद बनाकर मकान के अन्दर घुसना और वस्तुओं को उठा ले जाना इसके अन्तर्गत आता है।
-गांठ की वस्तु खोल लेना, जेब, पल्ले और गांठ, काट कर व बिस्तर आदि में से वस्तु निकाल लेना । नगरों में आज कल गांठ काटने की शिकायत बहुत होती है, चलते आदमी की जेब से माल निकाल लिया जाता है.। यह बड़ी चोरी है।
३-यंत्रोद्घाटन ताले को तोड़कर या खोलकर माल निकाल लेना । ४-किसी के घर की वस्तु को नजर बचाकर उठा ले जाना ।
५-गिरी, पड़ी हुई रास्ते की वस्तु, जिसके स्वामी का पता हो ग्रहण कर लेना या राह चलते किसी को लूटना ।
साधक आनन्द ने इन पांचो प्रकार की स्थूल चोरी का त्याग किया और वह उसका बराबर पालन करता रहा । यही कारण है कि आज भी वह साधक जगत् में अनुकरणीय माना जाता है।
चोरी की लत बहुत बुरी होती है । मनुष्य को चाहिए कि वह सदा इससे बचने का प्रयत्न करे और साथ ही अपने परिवार पर भी दृष्टि रखे कि कोई इस कुटेव का शिकार तो नहीं हो रहा है। यदि कोई गृहस्थ अपने बच्चे द्वारा लाई हुई एक साधारण वस्तु भी घर में रख लेता है तो समझना चाहिए कि वह बच्चे को पक्का चोर बनने को प्रोत्साहन दे रहा है । इस तरह बालक की बुरी प्रवृत्ति नित्य बढ़ती ही जाएगी और एक दिन वह चोरों का राजा डाकू भी बन सकता है। यदि मां-बाप सजग रहें तो बच्चों में चोरी की कुत्सित आदत कभी नहीं पड़ेगी । परन्तु आज के पालकों को पुत्र-पुत्री के संस्कार निर्माण की चिन्ता कहां है ?
एक जगह की बात है कुछ पास गांव के लोग संतों की सेवा में आए हुए थे । गांव के एक श्रीमन्त ने सबका अपने यहां आतिथ्य किया । उनमें एक भाई जो साधारण स्थिति का था, जिसके पास पांच रुपये और कुछ पैसे थे । कपड़े खूटी पर रख कर वह भोजन करने बैठा । भोजन के बाद जब उसने कपड़े संभाले तो रुपये गायव । बेचारा किराये की फिक्र करने लगा 1 पास के किसी भाई ने कहा-कदाचित् इनके लडके ने निकाल लिए होगे, क्योंकि उसकी ऐसी आदत है । "पाग्ययोग से लड़का रास्ते में मिल गया । पकड़ कर जेब टटोली तो पांच का नोट