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प्रथम अध्याय
[ २६ वस्तुओं में से जिस विशेषता के द्वारा एक वस्तु जुदी की जा सकती है, वह विशेषता ही लक्षण कहलाती है उदाहरणार्थ-किसी जगह पशुओं का समूह एकत्र है। उनमें गाय, भैंस, बकरी, घोड़ी आदि विविध जाति के पशु हैं। देवदत्त ने जिनदत्त से कहा जाओ, पशुओं के झुंड में से गाय ले श्राओ। जिनदत्त गाय को नहीं पहचानता है, इसलिए वह पूछता है-'गाय किसे कहते हैं ?' देवदत्त ने कहा -'जिसके गले में चमड़ा लटकता है उस स्त्री-जाति पशु को गाय कहते हैं।' यह सुन कर जिनदत्त गया
और जिस पशु के गले में चमड़ा लटक रहा था, उसे गाय समझ कर ले आया। यहाँ गले का लटकने वाला चमड़ा गाय का लक्षण कहलाया, क्योंकि ऐसा चमड़ा भैस
आदि अन्य पशुओं में नहीं पाया जाता। इसी को असाधारण धर्म कहते हैं। असाधारण धर्म से एक वस्तु दूसरी वस्तुओं से अलग करके पहचानी जाती है।
यहां ज्ञान, दर्शन श्रादि को जीव का लक्षण बतलाकर सूत्रकार ने यह भी • बतला दिया है कि यह ज्ञानादि जर्जाब के असाधारण धर्म हैं, अर्थात् जीव के अतिरिक्त अन्य किसी भी द्रव्य में ज्ञान, दर्शन आदि का सद्भाव नहीं पाया जाता ।
जिसके द्वारा पदार्थ जाने जाते हैं, या जो पदार्थों को जानता है अथवा जानना ही ज्ञान है । तात्पर्य यह है कि सामान्य-विशेष धर्म वाले पदार्थ के सामान्य गुण को गौण करके विशेष धर्मों को प्रधान करके जानने वाला प्रात्मा का गुण ज्ञान कहलाता है । ज्ञान का विस्तृत विवेचन ज्ञान-प्रकरण में किया जायगा ।
___ पदार्थ के विशेष धमों को गौण कर के सामान्य धर्म को. प्रधान. करके जानने चाला आत्मा का गुण दर्शन कहलाता है । ज्ञान साकारोपयोग कहलाता है और दर्शन निराकारोपयोग कहलाता है। ज्ञान के द्वारा पदार्थ की विशेषताएँ जानी जाती हैं और दर्शन से सामान्य अर्थात् सत्ता का ही ज्ञान होता है। ___ . अशुभ और लावध क्रियाओं का त्याग करके शुभ क्रियाशों में प्रवृत्ति करना चारित्र है अथवा श्रात्मा का अपने शुद्ध स्वभाव में रमण करना चारित्र है । चारित्र के पांच भेद हैं-सामायिक. छेदोपस्थापना, परिहारारिशुद्धि, सूक्ष्म सम्पराय और यथाख्यात । इनका विशेष विवेचन भी आगे किया जायगा।
संवर और निर्जरा के हेतु मुमुनु जन अनशन आदि वाह्य तपस्या और आलोचना, प्रतिक्रमण आदि प्राभ्यन्तर तपस्या करते हैं, वह तप है । जीव के सामर्थ्य को वीर्य कहते हैं और झान-दर्शन की प्रवृत्ति उपयोय कहलाती है। यह लक्षण जिसमें पाये जावें उसे जीव कहते हैं ।
प्रश्न-जीव का लक्षण बताने के लिए उसके किसी एक ही विशेष गुण का उल्लेख कर देना पर्याप्त था। उसी एक गुण के द्वारा जीव, अन्य द्रव्यों से अलग समझा जा सकता था । ऐसी अवस्था में यहां बहुत-से गुणों का कथन क्यों किया गया है ?
समाधान-सूत्रकार परम दयालु है । करुणा से प्रेरित होकर प्रत्येक शिष्य