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द्वितीय अध्याय संचार हो उसी समय श्रायु का बंध हो जाय !
दो भांग बीतने पर और एक भाग शेष रहने पर श्रायु का बंध होने की और लक्ष्य रख कर ही संभवतः दो-दो तिधियों के पश्चात् एक-एक तिथि को पर्व-तिथि के रूप में मनाने की व्यवस्था की गई है। जो भी हो, निरन्तर अप्रमत रहकर प्रान्तरिक शुद्धता के लिए प्रयत्न करने की आवश्यकता तो बनी ही रहती है। अतएव भव्य जीव, जो परभव में सुख के अभिलाषी हैं, उन्हें एक क्षण के लिए भी प्रमाद में नहीं एड़ना चाहिए। सूल:-नामकम्मं तु दुविहं, सुहं असुहं च प्राहियं ।
सुहस्त उ बहू भेया, एमेव असुहस्स वि ॥ १३ ॥ छाया:-नाम कर्म तु द्विविध, शुभम शुभं चाहृतम् ।
शुभस्य तु बहवो भेदाः, एवमेवाशुभस्याऽपि ॥ १३ ॥ शब्दार्थः-नाम कर्म के दो भेद हैं-(१) शुभ नाम कर्म और (२)अशुभ नाम कर्म शुभ नाम कर्म के बहुत से भेद हैं और इसी प्रकार अशुभ नाम कर्म के भी बहुत से भेद
है
भाष्यः- -नाम कर्म की प्रकृति चित्रकार के समान है । चित्रकार जैसे हाथी, चोड़ा, गाय, भैंस, मनुष्य प्रादि के नाना श्राकार अंकित करता है उसी प्रकार नाम कर्म भी-नाना प्रकार के मनुष्य, देव, पशु पक्षी आदि-आदि की रचना करता है। नाम कर्म के भेद कई प्रकार से बताये गये हैं। किसी अपेक्षा ले ४२ भेद, किसी अपेक्षा से ६७ भेद और किसी अपेक्षा से ६३ या १०३ खेद भी कहे गये हैं । संक्षेप की. अपेक्षा दो भेद भी होते हैं, जैसा कि यहां सूत्रकार ने प्रतिपादन किया है।
नास कर्म के मूल दो भेद हैं--शुभ अर्थात प्रशस्त और अशुभ अर्थात् प्रतशस्त । शुभ नाम कर्म के अनेक भेद हैं और अशुभ के भी अनेक भेद हैं । यहां वयालीस भेदों का उल्लेख किया जाता है-- १) गति नास कर्म ,२) जाति नाम कर्म (३) शरीर नामकर्म (४) अंगोपांग नामकर्म १) बंधन नास (६ संघात वास (७) संहनन्द नाम ८, संस्थान, नाम (ह) वर्ण नाम (१०) गंध नाम (११) रस नाम (१२) स्पर्श नाम (१३) श्रानुपूर्वी नास (१४) विहायोगति नाम (१५) पराघात नाम (१६) उच्छास नाम (१७) प्रातप नाम (१८) उद्योतनाम (१६) अगुरु लघु नाम (२०) तीर्थकर नाम (२१) निर्माण नाम (२२) उपघातं नाम (२३) त्रस नाम (२४) स्थावर नाम (२५) बादर नाम (२६) सूक्ष्म नाम (२७) पर्याप्त नाम (२८) अपर्याप्त नास (२६) प्रत्येक नाम (३०) साधारण नाम (३१) स्थिर नाम (३२) अस्थिर नाम (३३) शुभ नाम (३४) अशुभ नाम (३५) सुभगं नाम (६६) दुर्भग नाम (३७) सुस्वर नाम (३८) दुःस्वर नाम (३६) आदेय नाम (४०) अनादेय नाम (४१) बंशः कीर्ति नाम (४२) अयशः कीर्ति नाम । - इन बयालीस में उत्तर भेदों के भी अनेक उत्तरोत्तर भेद हैं। जैसे गति के चार