________________
marAADHunthamand
an
-
सोलहवां अध्याय उन्हें कल्याण के मार्ग में अग्रसर होने में सरलता होती है। कहा भी है।-, .
नहिं नारीण संजोगा, पूयणा पिटुतो कया।
सव्वमेयंनिराफिच्चा, ते ठिया सुसमा हिए। अर्थात् जिन पुरुषों ने स्त्री संसर्ग और काम श्रृंगार का त्याग कर दिया है के छान्य समस्त उपसगों को जीतकर उत्तम समाधि में स्थित होते हैं। ..
एकान्त में ली और पुरुष के परस्पर वार्तालाप करने या खड़े रहने से अनेक प्रकार के विकारों की उत्पत्ति होना संभव है। नीतिकार कहते हैं:--
घृत कुम्भसमा नारी, तप्ताङ्गारलमः पुमान् ।
तस्माद् घृतश्च वह्निञ्च, नैकन स्थापयेद् बुधः ॥ अर्थात् स्त्री धी के घड़े के समान है और पुरुष तपे हुए अंगार के समान है। . अतएव बुद्धिमान पुरुष वृत और अग्नि को एक स्थान पर न रक्खे। . .
कदाचित् कोई जितेन्द्रिय पुरुष या स्त्री विकार से परे होतो भी उन्हें एकान्तः में स्थित नहीं चाहिए, क्योंकि ऐसा करने से संसार में अपकीर्ति होती है । लोग्र संदेह की दृष्टि से देखने लगते हैं। अतएव विशेषतः त्यागी पुरुष को इस उपदेश कर सावधान होकर पालन करना चाहिए ।
जहां अनेक मार्ग भाकर मिलते हैं वह महारथ कहलाता है । गाथा के शेष पदों का अर्थ सुगम है। मूलः-साणं सूइनं गाविं, दित्तं गोणं हयं गये।
संडिब्भ कलहं जुद्धं, दूरश्रो परिवज्जए ॥२॥ छाया:-श्वानं सूतिका गां, हप्तं गोणं हयं गजम् ।
सडिस्भं कलहं युद्ध, दूरतः परिवर्जयेत् ॥ २॥ शब्दार्थ:--हे इन्द्रभूति ! श्वान, प्रसूता गाय, मतवाले बैल, घोड़ा और हाथी से तथा बालकों के क्रीड़ास्थल से और कलह एवं युद्ध से दूर ही रहना चाहिए।
भाष्यः-मुनि यद्यपि एकान्त स्थान में निवास करते हैं, तथापि श्राहार आदि के लिए उन्हें इधर-उधर मोहल्लों में आना ही पड़ता है । जय वहां उन्हें इन बातों का ध्यान रखना चाहिए । कुत्ते से दूर रहें, प्रसूता अर्थात तत्काल व्याई हुई गाय से दूर होकर निकले, मतवाले बैल से, घोड़े से और हाथी से बचकर चले। चालक रास्ते क्रीड़ा करते हैं। वे रेत में अपना क्रीड़ास्थल बनाते है । कोई २ मकान बनाने की फ्रीड़ा करते है, कोई अन्य प्रकार की उन बालकों के लिए वह घरधूला यदा प्रिय होता है । कोई उसे विगाड़ दे तो उन्हें अत्यन्त दुःख होता है। छातएव घच्चों के फ्रीड़ा स्थल से बचकर ही निकलना चाहिए ।
वाचनिफ झगड़ा कलह कहलाता है और शास्त्रों के प्रयोग के साथ होने वाला