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_ . नरक-स्वर्ग-निरूपणं ___ इस प्रकार सम्पूर्ण ज्योतिष चक्र समतल भूमि से नौ सौ योजन की ऊँचाई पर समाप्त हो जाता है। नौ सौ योजन ऊँचे तक मध्यलोक गिना जाता है, अतएव ज्योतिष चक्र मध्य लोक में ही अवस्थित है। ___जम्बूद्वीप में दो सूर्य और दो चन्द्रमा हैं । लवण समुद्र में चार सूर्य और चार चन्द्रमा हैं। धात की खंड द्वीप में बारह सूर्य और बारह चन्द्रमा हैं। पुष्करार्द्ध द्वीप में बहत्तर सूर्य और वहत्तर चन्द्रमा हैं । इस प्रकार अढाई द्वीप अर्थात् सम्पूर्ण मनुष्य क्षेत्र में एक सौ बत्तीस सूर्य और इतने ही चन्द्रमा है। अढ़ाई द्वीप के सूर्य और चन्द्रमा निरन्तर गति से मेरु पर्वत की प्रदक्षिणा करते रहते हैं।
अढ़ाई द्वीप के चारह असंख्यात सूर्य और असंख्य चन्द्रमा हैं, पर वे अचर अर्थात स्थिर हैं। उनकी लम्बाई-चौड़ाई और ऊँचाई, अढाई द्वीप के सूर्य आदि से आधी-प्राधी है। ___ ज्योतिषी देवों में सूर्य और चन्द्रमा--दो इन्द्र हैं। आश्विन और चैत्र मास की पूर्णिमा के दिन जिस सूर्य और जिस चन्द्रमा का उदय होता है, वही सूर्य-चन्द्र इनके इन्द्र हैं, ऐसा उल्लेख ग्रंथों में पाया जाता है।
एक-एक सूर्य एवं चन्द्रमा के साथ अध्यासी ग्रह, अठाईस नक्षत्र और छियासठ हजार, नो सौ पचत्तर कोड़ा-कोड़ी तारे हैं । ज्योतिषी देवों का विस्तृत वर्णन अन्यत्र देखना चाहिए । विस्तार भय से यहां सामान्य कथन किया गया है। मूलः-वेमाणिया उ जे देवा, दुविहा ते विया हिया।
कप्पोवगा य बोद्धव्वा, कप्पाईया तहेव य ॥ १६॥ छाया:-वैमानिकास्तु थे देवाः, द्विविधास्ते व्याहृताः।।
कल्पोपगाश्च बोद्धव्याः, कल्पातीतस्तथैव च ॥ १ ॥ शब्दार्थ:--जो वैमानिक देव हैं, वे दो प्रकार के कहे गये हैं (१) कल्पोवत्पन्न और (२) कल्पातीत।
भाष्यः-तीन निकायों के देवों का कथन करने के पश्चात् अव चौथे वैमानिक देव-निकाय का वर्णन किया जाता है। वैमानिक देवों के मूलतः दो भेद हैं-कल्पोत्पन्न और कल्पातीत । जिन वैमानिको में इन्द्र, सामानिक प्रादि का विकल्प होता हैं वे कल्पोत्पन्न कहलाते हैं और जिनमें इस प्रकार भेदों की कल्पना नहीं होती-जहाँ किसी प्रकार का भेद्भाव नहीं है-सभी अहमिन्द्र हैं, वे कल्पातीत कहलाते हैं।
____कल्पोत्पन्न देवों में दस भेद होते हैं।-(१) इन्द्र (२) सामानिक (३) प्राय त्रिंश (४) पारिषद् (५) श्रात्मरक्षक (६) लोकपाल (७) अनीक (८) प्रकीर्णक (१) आभियोग्य और (१०) किल्विपिक । इनका परिचय इस प्रकार है:
(१) इन्द्र-अन्य देवों से विशिष्ट ऐश्वर्य वाले, मनुष्यों में राजा के समान शासक देव इन्द्र कहलाता है।