Book Title: Nirgrantha Pravachan
Author(s): Shobhachad Bharilla
Publisher: Jainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam

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Page 776
________________ [७१४ ] निर्ग्रन्थ प्रवचन पर सम्मातियां निग्रन्थ प्रवचन के भाव बहुत अच्छा है । मैं मुनि श्री चौथमलजी महाराज को ऐसी मूल्यवान पुस्तक तैयार करने और जनता के सामने रखने को, जो कि जैन धर्म के सच्चा सारांश भगवत गीता की तरह बताती है बहुत धन्यवाद देता हूँ। (२७) लीडर इन्हाबाद ता० २८ फरवरी सन् १९३४ . - मुनि श्री चौथमलजी महाराज ने इस निर्ग्रन्थ प्रवचन में भगवान् महावीर के उपदेश के कुछ रत्न इक्कठे किये है। (२८) कल्याण वर्ष १३ के फरवरी अङ्क में पण्डित श्रीरामनाथजी सुमन । निग्रन्थ-प्रवचन मैने अनेक बार पढ़ा है । मनन करने की भी चेष्टा की है। यह जैन धर्म का पवित्र ग्रन्थ है । पर इस में बहुत कम ऐसी बातें हैं जो · जैनेतर मुमुक्षुओं या सत्य शोधको के लिए भिन्न धर्म-सी हों । अनेक स्थानों पर तो ऐसा मालूम पड़ता है मानो हम गीता पढ़ रहे हों । इस से जैन तथा जैनेतर दोनों लाभ उठा सकते हैं। प्रोफेसर टी. कृष्ण मूर्ति एम० ए० बी० एस्सी महाराजा कालेज, मयसूर । निर्ग्रन्थ-प्रवचन के कुछ भागों को मैंने पढ़ा और उस से बहुत लाभ लिया . . भाषा सरल और सुन्दर है । मुझ जैसे अहिन्दी बोलनेवाले भी आसानी से पढ़ सकते हैं और समझ भी सकते हैं। . (३०) । राधास्वामी मही शिवव्रतलालजी एम० ए० एल० एल० डी० ता० २७-८-सन् १६३५ के पत्र में । मुनि श्री चौथमलजी महाराज ने निग्रेन्थ प्रवचन के तालीक से लोगों पर बहुत बड़ा अहसान किया । पण्डितजी ने यह कमाल किया है कि प्राकृतिक .. के साथ विला किसी महशुप रद्दोबदल के उसको संस्कृत का जामा भी पहना

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