Book Title: Nirgrantha Pravachan
Author(s): Shobhachad Bharilla
Publisher: Jainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam

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Page 764
________________ ( . ७०२ । मोक्ष-स्वरुप स्तिकाय का अभाव है वहीं गति का भी प्रभाव हो जाता है। सिद्ध जीव यही २ चोदि* का त्याग करके लोकान में जाकर सिद्ध हो जाते हैं। अनादिकाल से अब तक अनन्तानन्त जीव सिद्ध हो चुके हैं, अब भी विदेह क्षेत्र से सिद्ध होते हैं और भविष्य में भी होते रहेंगे। वे सब जीव परिमित सिद्धक्षेत्र में कैसे समा सकते हैं इसका समाधान यह है कि अमूर्त वस्तु के लिए अलग स्थान, की आवश्यकता नहीं होती। सिद्ध भगवान् अमूर्त होने से एक ही स्थान में अनेक समा जाते है । कहा भी है: जत्थ य एगो सिद्धो, तत्थ अणंता भवक्खयविमुक्का। अन्नोन्नसमोगाढा पुट्ठा सव्वे य लोगते ॥ फुसइ अणंते सिद्धे, सव्वपएसेहिं नियमसा सिद्धा। ते वि असंखज्जगुणा, देसपएसेहिं जे पुट्ठा! अर्थात्- जहाँ एक सिद्ध है वहीं भव-क्षय से मुक्त हुए अनन्त सिद्ध . विराजमान रहते हैं। सब सिद्ध लोक के अन्तिम भाग में एक-दूसरे को अवगाहन करके स्पष्ट रूप से रहे हुए हैं। प्रत्येक सिद्ध अपने समस्त प्रदेशों से अन्य अनन्त सिद्धों को स्पर्श करता है और जो देश-प्रदशों से स्पृष्ट हैं वे भी उससे असंख्यात गुने हैं अर्थात् एक सिद्ध के . एक-एक देश-प्रदेश से भी अनन्त सिद्धों का स्पर्श हो रहा है । इस प्रकार एक सिद्ध के असंख्यात प्रदशों में से प्रत्येक प्रदेश के साथ अनन्त सिद्धों का स्पर्श है। जैसे एक ज्ञेय पदार्थ में अनेक ज्ञानों का समावेश हो जाता है, एक ही रूप में अनेक दृष्टियों का समावेश हो जाता है, एक ही आकाश के प्रदेश में धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय पुदगल श्रादि अनेक का समावेश हो जाता है, इसी प्रकार एक सिद्ध की अवगाहना रूप प्रदेश में अनन्त सिद्धों का समावेश हो जाता है।। व्यवहारनय की अपेक्षा यहीं सिद्धि प्राप्त होती है, क्योंकि सिद्धि का कारण सम्यक्त्व श्रादि यहीं है, निश्चयनय की अपेक्षा सिद्धि क्षेत्र में जाने पर सिद्धि प्राप्त. होती है। शरीर का तीसरा भाग पोला है, जब उसे जीव अपने प्रदेशों से पूर्ण करता है तो श्रात्मप्रदेशों की अवगाहना तृतीय भाग न्यून हो जाती है। इसी कारण सिद्ध जीव की अवगाहना उनके शरीर तीसरा भाग न्यून कही गई है। अवगाहना की यह न्यूनता योगनिरोध के समय ही हो जाती है। * यहां शरीर के अर्थ में 'वोदि' शब्द का प्रयोग किया गया है। यही शब्द अंग्रेजी भाषा में 'वोडी' (Body) रूप से इसी अर्थ में प्रचलित है। भाषा शास्त्र की दृष्टि से यह महत्व की बात है । इससे पौर्वात्य एवं पाश्चात्य भाषाओं के एक आदि . नोत का समर्थन होता है।

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