Book Title: Nirgrantha Pravachan
Author(s): Shobhachad Bharilla
Publisher: Jainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam

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Page 761
________________ अठारहवां अध्याय मूल :- जहा दद्धा बीयाणं, ण जायंति पुणंकुरा । कम्मबीएस दद्धेसु, न जायंति भवंकुरा ॥ २४ ॥ छाया:—यथा दग्धानामङ्कुराणां, न जाय -ते 'पुनरङ्कुराः 1 . कर्मबीजेषु दग्धेषु, न जायन्ते भवाङ्कुराः ॥ २४ ॥ [ ६६६ ]. शब्दार्थः— जैसे जले हुए बीजों से फिर अंकुर उत्पन्न नहीं होते, उसी प्रकार कर्म - रूपी बीजों के जल जाने पर भव रूप अंकुर उत्पन्न नहीं होता । श्री गौतम उवाच -- मूल:- कहिं पहिया सिद्धा, कहिं सिद्धा पइट्टिया । भाष्यः-- - पूर्व गाथा में जिस विषय का प्रतिपादन किया गया है उसी को यहां दूसरे उदाहरण से पुष्ट किया गया है । जले हुए बीज अगर खेत में बो दिये जांचें तो चाहे जैसी अनुकूल वर्षा होने पर भी अंकुर उत्पन्न न होंगे, क्योंकि बीज में अंकुर - जनन सामर्थ्य का ही प्रभाव हो गया है । जब उपादान कारण ही तद्विषय शक्ति से विकल है तब निमित्तकारण कार्य को कैसे उत्पन्न कर सकते हैं ? इसी प्रकार कर्मों रूपी बीज के जल जाने पर, 'भवावतार की शक्ति ही नहीं है तो फिर बाहरी कारण उसे संसार में कैसे श्रवतीर्ण कर सकते हैं ? अतएव कर्म-बीज़ के दग्ध होने पर भवांकुर उत्पन्न नहीं होता अर्थात् समस्त कर्मों का आत्यन्तिक क्षय हो जाने पर आत्मा फिर संसार में कभी अवतीर्ण नहीं होता । जब श्रात्मा 7 छाया:- क्व प्रतिहताः सिद्धाः क्व सिद्धाः प्रतिष्ठिताः । क्व शरीरं त्यक्त्वा, कुत्र गत्वा सिद्ध्यन्ति ॥ २५ ॥ कहिं बोदिं चइता णं, कत्थ गंतू सिज्झह ॥ २५ ॥ शब्दार्थः-भगवन् ! सिद्ध भगवान् जाकर कहाँ रुक जाते हैं ? सिद्ध भगवान् कहाँ स्थित हैं ? वे कहाँ शरीर का त्याग करके, कहाँ जाकर सिद्ध होते हैं ? भाष्य:- मुक्त जीवों के विषय में ऊपर जो निरूपण किया गया है, उससे उठने वाले प्रश्न सर्वसाधारण भव्य जीवों के लाभ के लिए, गौतम स्वामी सर्वज्ञ श्रीमहावीर प्रभु के समक्ष उपस्थित करते हैं । : सिद्ध भगवान् कहाँ जाकर रुक जाते हैं ? कहाँ विराजमान रहते हैं ? कहाँ शरीर का त्याग करके सिद्ध होते हैं ? इन प्रश्नों का समाधान अगली गांथा में किया जायगा । इन प्रश्नों के पठन से यह स्पष्ट हो जाता है कि अगर सिद्धान्त संबंधी कोई गूढ़ बात समझ में न आवें तो अपने से विशिष्ट श्रुतवेत्ता से प्रश्न करके समझ लेनी

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