Book Title: Nirgrantha Pravachan
Author(s): Shobhachad Bharilla
Publisher: Jainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam

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Page 757
________________ ध्याय [ ६६५ १ इस प्रकार दोनों एकान्तवादी आपस में एक-दूसरे के विरुद्ध कथन करते हैं । परन्तु दोनों ही भ्रम में हैं । वस्तुतः ज्ञान के बिना क्रिया हो नहीं सकती, अगर हो भी तो विपरीत फलप्रद भी हो सकती है और क्रिया के बिना ज्ञान निरुपयोगी है । श्रत एव मुक्ति प्राप्त करने के लिए दोनों ही परमावश्यक हैं । मूल:- पाणस्स सव्वस्त पगासणाए, अण्णा मोहस्स विवज्जयाए । रागस्स दोसस्स य संखएणं, एतसोक्खं समुवेइ मोक्खं ॥ २१ ॥ छाया: - ज्ञानस्य सर्वस्य प्रकाशनया, श्रज्ञानभोहस्य विवर्जनया | रागस्य द्वेषस्य च संक्षयेय, एकान्तसौख्यं समुवैति मोक्षम् ॥ २१ ॥ -- शब्दार्थः- सम्पूर्ण ज्ञान के प्रकाशित होने से, अज्ञान और मोह के छूट जाने से `तथा राग और द्वेष का पूर्ण रूप से क्षय हो जाने से एकान्त सुख रूप मोक्ष प्राप्त करता है । भाव्य:--: - सम्पूर्ण ज्ञान अर्थात् तीन काल और तीन के समस्त पदार्थों को, उन पदार्थों की त्रिकालवर्त्ती अनन्तानन्त पर्यायों को, युगपत् स्पष्ट रूप से जानने वाले केवलज्ञान के प्रकट हो जाने से अज्ञान का सर्वथा नाश हो जाता है । अतएव अज्ञान और मोह का सर्वथा अभाव हो जाने से तथा क्रोध एवं मानं रूप द्वेष तथा माया और लोभ रूप राम का क्षय होने से एकान्त सुखमय मुक्ति होती है । . तात्पर्य यह है कि अज्ञान, मोह-राग, द्वेष आदि समस्त विकारों का पूर्णरूपेण क्षय होने पर ही मुक्ति प्राप्त होती है । वैशेषिकमत वाले मुक्ति में सुख का अभाव मानते हैं । उनके मत का निराकरण 'पगत लोक्खं' पद से हो जाता है । एकान्त सुख का अर्थ है - जिस सुख में दुःख का लेश मात्र भी न हो और जिस सुख से भविष्य में दुःख की उत्पत्ति न होती हो । संसार के विषयजन्य सुख, दुःखों से व्याप्त हैं और भावी दुःखों के जनक हैं । मोक्ष का सुख प्रात्मिक सुख है, परम साता रूप हैं । अतएव मोक्ष प्राप्त होने पर हो उसका आविर्भाव होता है । वैशेषिक लोग सांसारिक सुख को ही सुख मानते हैं इस कारण उन्होंने मुक्ति में सुख का अभाव स्वीकार किया है । 1 शंका- अगर मोक्ष को सुख स्वरूप मानेंगे तो सुख की कामना से प्रेरित होकर योगी मोक्ष के लिए प्रवृत्ति करेंगे । ऐसी दशा में उन्हें मुक्ति प्राप्त ही न हो सकेगी, क्योंकि निष्काम भाव से साधना करने वाले योगी ही मोक्ष के अधिकारी होते हैं। अतः मोक्ष को सुखमय मानना उचित नहीं है । समाधान - मोक्ष को सुखमय न मानने पर भी आप दुःख भावमय मानते हैं

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