Book Title: Nirgrantha Pravachan
Author(s): Shobhachad Bharilla
Publisher: Jainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam

View full book text
Previous | Next

Page 731
________________ अठारहवां अध्याय - [६७१ 1 (३ ) मैत्रीभाव का वमन करना-जिसके साथ मैत्री का संबंध स्थापित किया है; उनकी मैत्री को स्वार्थ में बाधक समझकर त्याग देना तथा दूसरे मैत्री करना चाहे तब भी प्रतिकूल व्यवहार करके मैत्री को भंग करने की चेष्टा करना। . (४) श्रुत का अभिमान करना-किञ्चित् शास्त्र का वोध प्राप्त कर लेने पर यह समझना कि लंसार में मेरे सदृश कौन ज्ञानवान शास्त्रवेत्ता है ? शास्त्रीय ज्ञान में कौन मेरा सामना कर सकता है ? (५) पापपरिक्षेपी होना---गुरुजनों से कभी साधारण सूल हो जाय तो उसका ढिंढोरा पीटनाया अपना पाए दूसरे पर डालना । (६) मित्रों पर कोप करना-हितैषी जन हित से प्रेरित होकर तु-शिक्षा दें तो उलटे उन पर शोध करना । (७) परोक्ष में निन्दा करना-अपने प्रिय से प्रिय जन की भी परोक्ष में निन्दा करना। ___ (८) भाषा समिति का विचार न करके असंबद्ध-अंट-तंट भाषण करना, निरर्थक बहुत बोलना, अप्रिय भाषा का प्रयोग करना । (६) द्रोही होना-गुरु द्रोह करना, संघ द्रोह करना, अपने साथियों के साथ दोह करना। (१०) अभिमान करना-शुत का, चारित्र का, तपस्या का, प्रतिष्ठा का या अन्य किसी विशेपता का मद करना। (११) लुब्ध होना-इन्द्रियों के रस आदि विपरों में लोलुपता धारण करना, इष्ट विपयों की प्राप्ति की अभिलाषा करना, उसके लिए प्रयत्न करना । (१२) इन्द्रियों का निग्रह न करना - नेत्र रंजक रूप और श्रुति-मधुर शब्द ग्रादि में प्रवृत्त होने वाली इन्द्रियों को नियंत्रित न करना-इन्द्रियों का अनुसरण करना। संविभागी होना-प्राप्त हुए श्राहार आदि का अपने साथियों में यथायोग्य बँटवारा न करके सारा का सारा साप ही खा लेना अथवा अच्छा-अच्छा भाप खा लेना और निःस्वादु भोजन आदि अप्रिय पदार्थ अन्य फा देना। (१४) अव्यक्त होना-श्रव्यस्त अर्थात् अस्पष्ट, भापण करना । कोई फिली धात को पृ, तो गोल मोल बोलना। यह लक्षश जिसीय पाये जाते हैं वह अविनीत कहलाता है। विनीत बनने के लिए इन दोषों का परित्याग करना चाहिए । मूलः-अह पण्णरसहिं ठाणेहिं, सुविणीए ति वुच्चई । नीया वित्ती अचवले, अमाई अकुऊहले ॥ ६ ॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 729 730 731 732 733 734 735 736 737 738 739 740 741 742 743 744 745 746 747 748 749 750 751 752 753 754 755 756 757 758 759 760 761 762 763 764 765 766 767 768 769 770 771 772 773 774 775 776 777 778 779 780 781 782 783 784 785 786 787