Book Title: Nirgrantha Pravachan
Author(s): Shobhachad Bharilla
Publisher: Jainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam

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Page 751
________________ গুৱাহা [ ६६ ] एक जन्म में दो बार उपशम श्रेणी कर सकता है। जिसने एक बार उपशम श्रेणी द्वारा ग्यारहवां गुणस्थान प्राप्त किया और फिर वह गिर गया वही जीव दूसरी बार अपने प्रवल पुरुषार्थ से पक श्रेणी करके मुक्ति भी प्राप्त कर लेता है। पर कर्मग्रंथों के अनुसार दो बार उपशमशेणी करने वाला इतना क्षीणवीर्य हो जाता है कि वह उसी जन्म में पकश्रेणी करके मुक्ति-लाभ करने में समर्थ नहीं होता । शास्त्रों में ऐसा भी उल्लेख है कि एक जीव, एक जन्म में एक ही श्रेणी कर सकता है। ग्यारहवें गुण स्थान के विषय में कहा है कदकफलजुदजलं वा सरए सर वाणियं व णिस्मलयं । सयलोवसंतमोहो. उवसंत कसायनो होदि । अर्थात् -जैसे फिटकरी आदि डालने पर पानी का मैल जव नीचे जम जाता है और पानी निर्मल हो जाता है अथवा शरद ऋतु में कूड़ा-कचरा नीचे बैठ जाने से जैसे तालाब का पानी निर्मल हो जाता है उसी प्रकार जिसका समस्त मोह उपशान्त हो गया हो उसे उपशान्त मोहनीय कहते हैं । जीव की ऐसी अवस्था उपशान्त मोहनीय गुणस्थान कहलाती है। (१२ ; क्षीणमोहनीय गुणस्थान-ऊपर कहा जा चुका है कि क्षपकश्रेणी वाला जीव मोहनीय कर्म का पूर्ण रूप से जब क्षय कर डालता है, तब वह दसवें गुणस्थान से सीधा बारहवें में प्राप्त होता है । यह अप्रतिपाती गुणस्थान है। इसमें पहुँचने वाला वीतराग हो जाता है । फिर उसके पतन का कोई कारण नहीं रहता। आत्मा के साथ प्रवल संघर्ष करने वाले, कर्म-सैल्य के अग्रसर मोह का क्षय हो जाने से प्रात्मा अतीव निर्मल और विशुद्ध हो जाता है। कहा भी हैः हिस्सेलखीणमोहो, फलिहामलभायणुदयसमचित्तो। खीणकसाओ भरणइ, णिग्गंथो वीयराएहि ॥ अर्थात्-सम्पूर्ण मोह का क्षय करने वाला, स्फटिक के निर्मल पात्र में स्थित जल के समान स्वच्छ चित्त वाला निम्रन्थ, वीतराग भगवान द्वारा क्षीण कषाय कहा गया है। बारहवे गुणस्थान की स्थिति भी अन्तर्मुहूर्त है। इस गुणस्थान के अन्तिम समय में शेष घातिया कर्मों का ज्ञानावरण, दर्शनावरण और अन्तराय का क्षय हो जाता है। (१३) सयोग केचली-गुणस्थान-चारों धाति कर्मों का क्षय हो जाने पर जिस वीतराग महापुरुष को केवलज्ञान, केवलदर्शन तथा अनन्तवीर्य प्राप्त हो जाता है, किन्तु जिसके योग विद्यमान रहते हैं वह सयोग केवली कहलाता है और उसकी अवस्था-विशेष को सयोग केवली गुणस्थान कहते हैं। यह अवस्था सशरीर मुक्ति, जीवन्मुक्ति, आर्हन्त्य अवस्था, अपर मोक्ष आदि के नाम से विख्यात है। इस अवस्था पर पहुंचे हुए केवली भगवान् संसार के प्राणियों के परम पुण्य के प्रभाव से मोक्ष मार्ग का उपदेश देते हैं । इस गुणस्थान में

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