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व्यन्तर देवों के असंख्यात नगर }
आठ व्यन्तर और आठ वारणव्यन्तर मिल कर व्यन्तरों की संख्या सोलह होती है । व्यन्तरों की यह सोलह जातियां हैं। एक-एक जाति के दो-दो इन्द्र होने के कारण कुल बत्तीस इन्द्र व्यन्तरों में होते हैं । प्रत्येक इन्द्र के चार हजार सामानिक देव, सोलह हजार आत्मरक्षक देव, चार अग्रसहिपियां, सात प्रकार की सेना और तीन प्रकार की परिषद होती है । व्यन्तर इन्द्रों के नाम इस प्रकार हैं:
(१) पिशाच-
( २ ) भूत
( ३ ) यक्ष
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( ४ ) राक्षस( ५ ) किन्नर
(६) किंपुरुष - (७) महोरग(८) गंधर्व
वाण व्यन्तर देवों के इन्द्रों के
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( ४ ) भूतवाई
( ५ ) कन्दित
( ६ ) महाकन्दित( ७ ) कोहंड - ( - ) पतंग
देव नाम ( १ ) पिशाच
( २ ) भूत
( ३ ) यक्ष ( ४ ) राक्षस ( ५ ) किन्नर
कालेन्द्र,
महाकालेन्द्र प्रतिरूपेन्द्र
सुरूपेन्द्र,
पूर्णभन्द्रन्द्रे, मणिभद्रेन्द्र
भीमेन्द्र,
किनरेन्द्र, सुपुरुषेन्द्र, श्रतिकायेन्द्र, गीतरति इंन्द्र,
नाम
( १ ) श्रानपन्नी -
सन्निहितेन्द्र, घातेन्द्र,
(२) पानपन्नी
( ३ ) इसिवाई ( ऋषिवादी ) - ऋषि,
ईश्वरेन्द्र,
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सुवत्स,
हास,
श्वेत,
पतंग,
नरक - स्वर्ग - निरूपण
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श्वेत
हरित
महाभीमेन्द्र
किंपुरुषेन्द्र
महापुरुषेन्द्र
महाकायेन्द्र
गीतरसेन्द्र
जैसा कि पहले कहा गया है, व्यन्तर देव विविध देशों में भ्रमण करते रहतें हैं। टूटे-फूटे घरों में जंगलों में, जलाशयों पर, वृक्षों पर तथा इसी प्रकार के अन्य न्य स्थानों पर रहते हैं । आठ प्रकार के वाणव्यन्तर गंधर्व देवों के ही भेद हैं । यह देव अत्यन्त विनोदशील, हास्यप्रिय, चपल और चंचल चित्त वाले होते हैं इन सब के शरीर का वर्ण और मुकुट का चिह्न इस कोष्टक से प्रतीत होगा:
शरीर वर्ण
कृष्ण
पन्मानेन्द्र
विधातेन्द्र
ऋषिपाल
महेश्वरेन्द्र
विशाल
रति
महाश्वेत
पतंगपति
मुकुट चिह्न कंदव वृक्ष शालिवृक्ष
वटवृक्ष
पाटलीवृक्ष
अशोकवृक्ष