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( १ ) अनाहत - विना श्रादर के वन्दना करना !
( २ ) स्तब्ध -- अभिमान से युक्त होकर वन्दना करना ।
( ३ ) प्रविद्ध-वन्दना करते-करते भाग जाना ।
( ४ ) परिपिसिडत--बहुत से मुनियों को एक साथ वन्दना करना ।.
( ५ ), टोल गति - उछल उछल कर वन्दना करना ।
श्रावश्यक कृत्य
( ६ ) अंकुश -- जैसे अंकुश से हाथी को सीधा किया जाता है, उसी प्रकार, सोये हुए या अन्य कार्य में व्यग्र श्राचार्य को आसन पर सीधा बिठाकर वन्दना करना । अथवा रजोहरण को अंकुश के समान हाथों में पकड़ कर वन्दना करना श्रथवा अंकुश से श्राहत हस्ती के समान सिर ऊँचा-नीचा करके वन्दना करना । (७) कच्छपरिंगित - रेंगते हुए-से वन्दना करना ।
(८) मत्स्योदवृत्त - जल में मत्स्य के समान उठते-बैठते हुए वन्दना करना अथवा एक मुनि को वन्दना करके जल्दी से दूसरे मुनि की ओर अंग भूकाकर वन्दना कर लेना ।
रखकर वन्दना करना ।
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(६) दुष्टमनस्कता - यह वन्दनीय मुझसे अमुक गुण में हीन हैं फिर भी मैं इन्हें वन्दना कर रहा हूं, इस प्रकार सोचते हुए दूषित मन से वन्दना करना ।
(१०) वेदिकावद्ध - घुटनों पर हाथ रखकर अथवा गोदी में घुटने और हाथ
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( ११ ) भय -
-संघ से, कुल से, गच्छ से या किसी अन्य से डर कर वन्दना
करना ।
( १२ ) भजमान - यह मेरी सेवा करेंगे या की नहीं, इस बुद्धि से चन्दना करना है (१३) मैत्री - श्राचार्य मेरे मित्र हैं, या वन्दना करने से इनके साथ मैत्री हो जायगी, ऐसा विचार कर वन्दना करना ।
( १४ ) गौरव -- मैं वन्दना - समाचारी में निष्णात हूं, यह बात दूसरों पर प्रकट हो जावे, इस प्रकार की बुद्धि से चन्दना करना ।
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(१५) कारण - ज्ञान आदि से भिन्न वस्त्र आदि के लाभ रूप निमित्त से वन्दना करना, अथवा मैं लोक में पूज्य होऊं या दूसरों से अधिक ज्ञानी होजाऊं, इस. भावना से वन्दना करना अथवा वन्दना से राजी कर लूंगा तो मेरी प्रार्थना स्वीकार न करेंगे, इस भावना से वन्दना करना |
(१६) स्तैनिक - चन्दना करने से मेरी हीनता प्रकट होगी, यह विचार कर चोर की तरह छिप कर वन्दना करना ।
( १७ ) प्रत्यनीक - श्राहार शादि करने में बाधा पहुंचाते हुए वन्दना करना ।
(१) रुष्ट - क्रोध के आवेश में थाकर वन्दना करना । (१६) तर्जित - वन्दना करने वाला और बन्दना न करने वाला तुम्हारे लिए