________________
सतरहवां अध्याय
[ ६३१ ]
भाष्यः - गाथा का अर्थ स्पष्ट है । भावी हित-अहित का विचार न करने वाले मिथ्यादृष्टि अज्ञानी कहलाते हैं । मिथ्यात्वजन्य अज्ञान के वशीभूत होकर जो जीव पापमय जीवन व्यतीत करने के लिए घोर हिंसा करते हैं, महान् आरंभ एवं महान् परिग्रह से युक्त होते हैं, उन्हें नरक में जाना पड़ता है। तरक घोर रूप अर्थात् अत्यन्त भयंकर हैं, घोर अन्धकार से व्याप्त है और दुस्सह यातनात्रों का धाम है ।
·
श्राशय यह है कि विविध प्रकार की बेदनाओं से व्याप्त नरक से बचने की
अभिलाषा रखने वालों को पाप कर्मों से विरत हो जाना चाहिए ।
मूलः - तिव्वं तसे पाणिणो थावरे य,
जे हिंसती प्रयसुहं पडुच्च । - जे लूसए होइ प्रदत्तहारी,
ण सिक्ख सेयवियस्स किंचिया || ४ ||
छाया:- तीव्रं प्रसान् प्राणिनः स्थावरान् च, यो हिनस्ति श्रात्मसुखं प्रतीत्य । यो रूपको भवत्यदत्तहारी, न शिक्षते सेवनीयरूप किञ्चित् ॥ ४ ॥
शब्दार्थः -- जो जीव अपने सुख के लिए त्रस और स्थादर प्राणियों की तीव्रता के साथ हिंसा करता है, जो प्राणियों का उपमर्दन करता है, बिना दिये दूसरे के पदार्थों को महण करता है और सेवन करने योग्य ( संयम ) का तनिक भी सेवन नहीं करता, वह नरक का पात्र बनता है ।
भाग्यः - जो पुरुष अपने सुख के लिए अन्य प्राणियों के दुःख की चिन्ता नहीं 'करता, दूसरे मरे या जीयें इस बात का विचार न करके अपने ही सुख के लिए प्रयत्न किया करता है, साथ ही बस और स्थावर जीवों की हिंसा करता है अर्थात् उनके माणों का व्ययरोपण करता है, अन्य प्राणियों को सताता है, दोरी जैसे कुत्सित कार्य करता है और संयम का किंचित् मात्र भी सेवन नहीं करता, वह नरक में जाकर घोर वेदनाएँ भोगता है ।
प्रकृत गाथा में 'हिंसइ' और 'लसए' दो क्रिया पर एक-सा अर्थ बतलाते हैं, पर दोनों का अर्थ एक नहीं है । 'हिंस' का अर्थ है-किसी जीव को शरीर और प्राणों से भिन्न करना अर्थात् मार डालना । 'लुसए' का अर्थ है-किसी जीव को उपमर्दन करना, उन्हें सताना, कष्ट पहुंचाना 1
पंचम गुणस्थानवर्ती देशविरत श्रावक भी कृषि एवं वाणिज्य आदि कार्य करता है और उसमें श्रारम्भजन्य हिंसा भी अवश्य होती है । फिर भी यह नरक में नहीं जाता। इसका कारण यह है कि वह दिसा संकल्पजा न होने के कारण तीव्रभाव से नहीं की जाती। इसी आशय को व्यक्त करने के लिए शास्त्रकार ने 'दिस' का विशेषण 'तिब्धं दिया हैं । 'तिव्यं' पद यहां क्रिया विशेषण हैं | अतिशय क्रूर परिणामों