________________
rupiadG
i ritcoinkutaandobaokal
संत्तरहवां अध्याय शूल:-दसहा उ भवणवासी, अट्टहा वण चारिणो।
पंचविहा जोइसिया, दुविहा वेमाणिया तहा ॥ १५ ॥ छायाः-दशधा तु भवन वासिनः, अष्टधा बन चारिणः।।
___ पञ्चविधा ज्योतिप्काः, द्विविधौ वैमानिको तथा ॥ १५ ॥ शब्दार्थः-भवनवासी देव दस प्रकार के हैं, वाणव्यन्तर आठ प्रकार के हैं, ज्यो- तिष्क देव पांच प्रकार के हैं और वैमानिक देव दो प्रकार के हैं।
भाष्यः-गाथा स्पष्ट है । पूर्व गाथा में चार निकायों का नाम निर्देश करके घकृत गाथा में क्रमशः उनके अंवान्तर भेदों की संख्या का उल्लेख किया गया है । भवनवासियों के दस, वाणव्यस्तरों के आठ, ज्योतिष्कों के पांच और चैमानिकों के दो भेद हैं। इन भेदों का नाम कथन अगली गाथाओं में क्रमशः किया जायगा। मूल:-असुरा नाग सुवरणा, विज्जू अग्गी वियाहिंया।
दीवोदहिदिसा वाया, थणिया भवनवासियो ॥ १६ ॥ छाया:-श्रसुरा नागाः सुवर्णाः, विद्युतोऽयग्रो व्याहताः।
द्वीपा उदधयो दिशो वायवः, स्तनिता भवनवासिनः ॥ १६ ॥ . शब्दार्थः-भवनवासी देवों के दस प्रकार यह हैं-(१)असुर (२) नाग (३) सुवर्ण (४) विद्युत् (५) अमि (६) द्वीप (७) उदधि (८) दिशा (६) वायु और (१०) स्तनित।
भाष्यः-सर्व प्रथम भवनवासी का नाम-निर्देश किया गया था अतएव यहां सब से पहले उसी के भेद बतलाये गये हैं। प्रत्येक नाम के साथ 'कुमार' शब्द का प्रयोग किया जाता है। यद्यपि देवों की उन अवस्थित रहती है, उनमें मनुष्यों एवं तिर्यञ्चों की भांति शैशव, बाल्य, कुमार, युवा तथा वुढापे का अवस्था भेद नहीं है, तथापि भवनवासी देवों का वेषभूषा, आयुध, सवारी और क्रीड़ा कुमारों के समान होती है श्रतएव उनके नामों के साथ 'कुमार' शब्द जोड़ा जाता है । इसलिए उनके जाम इस प्रकार है-(१) असुरकुमार (२) नागकुमार (३) सुवर्णकुमार (४) विघुत्कुमार (५.) अग्निकुमार (६) द्वीपफुमार (७) उदधिकुमार (८) दिशाकुमार (६) चायुकुमार (१०) स्तनितकुमार।
__ भवनवालियों में असुरकुमारों के भवन रनममा पृथ्वी के पंकबहुल भाग में हैं और शेष नव कुमारों के भवन नुरपृथ्वी के ऊपर और नीचे के एक-एक हजार योजन भाग को छोड़ कर शेष चौदह हजार योजन के भाग में हैं।
असुरकुमारों के भवनों की संख्या दक्षिण दिशा में चवालीस लाख है। इनके रन्द्र का नाम चमरेन्द्र है-यह इन दवों के अधिपति है। चमरेन्द्र के परिवार में ६४००० सामानिक देव, २५६००० श्रात्मरक्षक देव, छह महिनी ( पटरानियां) हैं ।