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श्रावश्यक कृत्या तो काले अभिप्पेए, सडढी तालिममंतिए । विसाएज्ज लोमहरिसं, भेयं देहस्ल कंखए । अह काललिम संपत्ते, प्राधायस्ल ससुस्सयं । सकामसरणं. मरह, तिराहमन्नयर मुणी ॥
उत्तराध्ययन ५, २६-३२ अर्थात्-शीलवान् एवं बहुश्रुत पुरुष मरण-समय उपस्थित होने पर किसी प्रकार के त्रास का अनुभव न करते हुए, धैर्य के साथ, प्रसन्नतापूर्वक मृत्यु को अंगीकार करते हैं, अतएव उनका मरण सकाममरण कहलाता है।
जीवन भर दयाधर्म का पालन करने वाले मेधावी पुरुष, लमय श्राने पर श्रद्धा. पूर्वक गुरुके सामने, विषाद का परित्याग करके, देह के भंग होने की प्रतीक्षा करता हुश्रा तैयार रहता है और तीन प्रकार के काममरण में से एक प्रकार के सकाम भरण पूर्वक शरीर को त्याग देते हैं।
सकाम मरण के तीन प्रकार यह हैं-(१) भक्त प्रत्याख्यान-श्राविन भोजन का त्याग करना।
(२) इत्वरिक मरण-आहार के त्याग के साथ-साथ चलने-फिरने के क्षेत्र की मर्यादा करना. - (३) पादोपगमन-शरीर की समस्त चेष्टाओं का त्याग करके निश्चल होजाना।
सकाम मरण के गुणनिष्पन्न पांच नाम हैं--(१) सकाममरण (२) समाधिअवण (३) अनशन (४) संथारा और (५) संलेखना।
' (१) सकाममरण-मुमुक्षु पुरुष सदा के लिए मृत्यु से मुक्त होने की कामना करते हैं। यह कामना जिलसे पूर्ण होती है उसे सकाम मरण कहा गया है।
(२) समाधि मरण - लव प्रकार की प्राधि, व्याधि और उपाधि से चित्त हटाकर पूर्ण रूप से समाधि में स्थापित किया जाता है। अतएव उसे समाधिमरण कहते हैं।
(३) अनशन-चारों प्रकार के आहार का त्याग इस मृत्यु के समय किया जाता है अतएव उसे अनशन भी कहते हैं।
(४) संथार!~-अल्त समय बिछौने में शयन करके सजाय के कारण संथारण
(५) संलेखना-माया, मिथ्यात्व और निदान रूप शल्यों की श्रालोचना, निन्दा एवं गर्दा उस समय की जाती है, अतएव उसे संलेखना भी कहते हैं।
ऊपर सकाममरण का जो विवेचन किया गया है, उससे यह अभिप्राय नहीं समझना चाहिए कि सानी पुरुय मृत्यु की कामना करते हैं, या मृत्यु का श्रावाहन करते हैं या भविम्य में भानेवाली मृत्यु को शीघ्र बुलाने का कोई प्रयत्न करते हैं।