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. साधु-धर्म निरूपण कर उन्हें त्याज्य बताया था। यहाँ बुद्धि एवं लाभ संबंधी मदों को हेय कहा है।
मैंने अमुक अमुक शास्त्रों का परिपूर्ण अध्ययन कर लिया है, मेरी बुद्धि अत्यन्त प्रकृष्ट है, इस प्रकार का विचार करके जो साधु अभिमान करता है, उसके हृदय में मान कषाय का शल्य विद्यमान होने के कारण वह निश्शल्य नहीं बन पाता । जहा निश्शल्यता नहीं है वहाँ समाधि भी नहीं हो सकती, इसी कारण सूत्रकारने अभिमान को समाधि की अप्राप्ति बताई है।
इसी भाँति जो मुनि लाभ के मद में मत्त होता है और दूसरों की अवलेहना करता है,जैसे मैं इतना सरस सुन्दर और स्वादिष्ठ आहार लाकर देता हूँ ! तुम लोगों को कोई ऐसा अच्छा श्राहार क्यों नहीं देता ? इत्यादि, वह. लाभ-मद में मत्त मुनि भी समाधि के अनुपम सुख के स्वाद से वंचित रहता है।
तात्पर्य यह है कि जो जाति का मद करता है उसे संसार में पुनः पुनः जाति (जन्म) जन्म दुःखों का अनुभव करना पड़ता है। जो कुल का अभिमान करता है वह सत्तरलाख कुल-कोटियों में परिभ्रमण करता है । जो प्रज्ञा के मद में मत्त होताहै वह बालप्रन अर्थात् अशान है। वास्तव में जो अज्ञान होता है वही अपने ज्ञान का अभिमान करता है। ज्ञानवान् जन अपने अज्ञान को जानता है, इसलिए वह अभिमान नहीं करता।
__ अचान पुरुष किंतना दयनीय है जो अपने ज्ञान का अभिमान तो करता है, पर स्वयं अपने अज्ञान का भी जिसे ज्ञान नहीं है ! जिसके घर में ही अंधेरा है वह बाहर क्या उजेला करेगा ? ज्ञानी जन धन्य है जो अपनी छमस्थ अवस्था में अपने अज्ञान को भलीभांति जानते हैं और इसी कारण कमी ज्ञान का मद नहीं करते । ज्ञानी और अज्ञानी में कितना भेद है ! कहा भी है--
यदा किञ्चिज्ज्ञोऽहम् द्विप इव मदान्धः समजति, तथा सर्वशोऽस्मीत्यभवद्वलितं मम मनः। . यदा किञ्चित् किञ्चिद् वुधजनसकाशादरगतम्,
.. तदा सूखोऽस्मीति घर इव मदो मे व्ययगतः ।। अर्थात जब मुझे अत्यन्त अल्प जान था, जव में हाथी की तरह मद में अंधा हो रहा था तव मेरा मन घमंड के मारे ऐसा हो रहा था कि बस, सर्वज्ञ मैं ही हूं। किन्तु जब विद्वानों से थोड़ा सा जान पाया, तब मुझे प्रतीत हुआ कि मैं अज्ञान हूं। उस समय मेरा समस्त अभिमान ज्वर की तरह उतर गया!
कवि ने अज्ञान का यह सजीव चित्र खींचा है । वास्तव में जब अज्ञान की अ. धिकता होती है, अज्ञान इतना अधिक बढ़ा होता है कि मनुष्य उसमें आकंठनिमग्न होकर अपने अशान को भी जानने में असमर्थ हो जाता है, तब वह अपने ज्ञान का अभिमान करता है। इसके विरुद्ध ज्ञानी पुरुष का अपने अज्ञान का भलीभांति ज्ञान होता है इसलिए वह ज्ञान का अभिमान नहीं कर सकता। .. ...