________________
४०४ ]
भाषा-स्वरूप वर्णन
ही सकता है । शब्द अगर पुल होता तो वह स्थूल भी होता । स्थूल होने से वह दीवाल आदि के पार नहीं निकल सकता था । पर शब्द दीवाल में घुस कर चाहर निकलता है इसलिए वह रूपी नहीं हो सकता और रूपी न होने के कारण पुदल भी नहीं माना जा सकता ।
(३) पौगलिक पदार्थों के उत्पन्न से पहले उनका उपादान कारण --अर्थात् पूर्व रूप दिखाई देता है और जब उनका ध्वंस होता है तब उत्तरकालीन रूप दिखाई देता है । जैसे घड़ा बनने से पहले उसका पूर्व रूप मृत्तिका उपलब्ध होती है और घड़ा नष्ट होने के पश्चात् उसका उत्तर रूप टुकड़े (ठीकरे ) उपलब्ध होते हैं । इसी प्रकार प्रत्येक पौलिक पदार्थ का पूर्ववत्त और उत्तरवर्त्ती रूप पाया जाता है, किन्तु शब्द का न तो कोई पूर्वकालीन रूप (पर्याय ) ही पाया जाता है, न उत्तरकालीन रूप ही । ऐसी अवस्था में शब्द को पुद्रले मानना उचित नहीं है ।
(४) पौद्गलिक पदार्थ, दूसरे पौगलिक पदार्थ में एक प्रकार की प्रेरणा उत्पन्न करता है, यदि शब्द पुद्गल रूप होता तो वह भी अन्य पौगलिक पदार्थों में प्रेरणा उत्पन्न करता । पर वह अन्य पदार्थों को प्रेरित नहीं करता अतएव वह पुद्गल रूप नहीं माना जा सकता ।
(५) शब्द प्रकाश का गुण है, इसलिए वह पौगलिक नहीं है । श्राकाश स्वयं पुद्गल नहीं है, इसलिए उसका गुण भी पुद्गल रूप नहीं हो सकता । योग मतावलम्बी इन युक्तियों से शब्द की इन युक्तियों पर संक्षेप में विचार किया जाता है ।
युद्गल रूपता का निषेध करते हैं ।
(१) सर्व प्रथम पहली युक्ति पर विचार करना चाहिए । इस युक्ति में शब्द के आधार को स्पर्श रहित माना गया है, किन्तु यह मान्यता ही निराधार है। वास्तव में शब्द का आधार स्पर्श-रहित नहीं है, किन्तु स्पर्शवान है । शब्द का आधार भाषावर्गणा है और भाषावर्गणा में स्पर्श अवश्य होता है । अतएव शब्द का श्राधार स्पर्शवाला होने से शब्द भी स्पर्श वाला है शब्द स्पर्श वाला है इस कारण वह पुद्गल रूप भी है । शंका- यदि शब्द में स्पर्श होता तो हमें स्पर्श की प्रतीति श्रवश्य होती किन्तु जब हम शब्द सुनते हैं जो स्पर्श का अनुभव नहीं होता । ऐसी अवस्था में शब्द को स्पर्शवान कैसे माना जाय ?
समाधान -- जिस वस्तु का श्रापको अनुभव न हो उसका प्रभाव ही हो, ऐसा नियम नहीं बनाया जा सकता । बहुत-सी वस्तुएँ ऐसी हैं जिनका श्रापको अनुभव नहीं होता, फिर भी अनुमान यादि प्रमाणों से उनका अस्तित्व स्वीकार किया जाता है । परमाणु का कभी प्रत्यक्ष नहीं होता, फिर भी उसका अस्तित्व आप स्वीकार करते हैं । फिर यह नियम कैसे माना जा सकता है ?
शंका-शब्द में स्पर्श हैं तो उसकी प्रतीति क्यों नहीं होती ?