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चौदावा अध्याय कर्मस्रोत बन्द नहीं कर पाया है, इस प्रकार जो स्वयं विषय-कषाय के पाश में फंसे हुए हैं, वे धर्मदेशना के अधिकारी नहीं हैं ।
ऐसे पुरुषों द्वारा उपदिष्ट धर्म श्रात्मकल्याण का साधन नहीं बन सकता । जो स्वयं अन्धा है वह दूसरों का पथप्रदर्शन कैसे कर सकता है १ अतएव धर्मप्रिय सजनों को धर्मप्रणेता के जीवन पर दृष्टिपात करके उसकी धर्मप्ररूपणा की योग्यता जांच लेनी चाहिए। भूलः-न कम्मुणा कम्म खवेति बाला,
अकम्मुणा कम्म खती धीरा । मेधाविणो लोभमयावतीता,
. संतोसिणो नो पकरोति पावं ॥ १८ ॥ भाया:-न कर्मणा कर्म क्षययन्ति बालाः, अकर्मणा कर्म क्षययन्ति धीराः ।
मेधावितो लोभमदवातीताः, सन्तोपिणो नों प्रकुर्वन्ति पापम् ॥ १८ ॥ शब्दार्थ:--बाल जीव सावध कर्मों से कर्म का क्षय नहीं करते हैं। धीर पुरुष अकर्म से अर्थात् संवर आदि शुद्ध अनुष्ठानों से कर्म का क्षय करते हैं। लोभ और अभिमान से रहित, संतोषी बुद्धिमान पुरुष पाप का उपार्जन नहीं करते हैं।
भाध्या-बालक के समान-हित और श्रहित के विवेक से शून्य पुरुष भी बाल कहलाते हैं। यह बाल जीव कर्मों का. क्षय करने के लिए अनेक प्रकार के सावध अनुष्ठानों का सहारा लेते हैं।
जैसे रक्त से रक्त नहीं धुल सकता उसी प्रकार पाप कर्मों से पाप कर्मों की निवृत्ति नहीं हो सकती । श्रतएव ऐसे विपरीत प्रयास करने वालों को शास्त्रकार 'वाल' जीव कहते हैं। ..
किस प्रकार कमों का क्षय नहीं हो सकता, यह स्पष्ट करने के पश्चात् द्वितीय चरण में शास्त्रकार यह बताते हैं कि पाप कर्मों का नाश किस प्रकार हो सकता है।
परीषह और उपसर्ग आने पर भी जो अपने पथ से और अपने पद से च्युत नहीं होते और दृढतापूर्वक समस्त विरोधी शक्तियों के साथ जूझते हैं, उन्हें धीर कहते हैं। धीर पुरुष अकर्म से अर्थात् निरवद्य अनुष्ठानो से-समिति, गुप्ति, तपस्या, संवर श्रादि के व्यवहार से कर्मों को क्षय करते हैं। कमों के क्षय का यही एकमात्र उपाय है। पाप कर्मों का विनाश निष्पाप क्रियाओं से ही हो सकता है।।
कमों का क्षय होते रहने पर भी यदि नवीन कर्मों का मानव होता रहे तो मुक्ति की प्राप्ति नहीं हो सकती । पूर्वोपार्जित कर्मों का क्षय और नवीन कर्मों के श्रानव का अभाव होने पर ही मुनि-लाभ होता है। मतएव शास्त्रकार उत्तरार्द्ध में नवीन कर्मों के उपार्जन के अभाव के उपाय पतलाते हुए कहते हैं-मेधावी अर्थात्