________________
-
-
-
-
पन्द्रहवां अध्याय
[ ५१३] मुनि की सेवा करना (४) ग्लान अर्थात् रुग्ण मुनि की सेवा करना (५) तपस्वी की लेवा करना (६) स्थविर की सेवा करना (७) स्वधों की सेवा करना (८) कुल [ गुरु भ्राता की सेवा करना (६) गण[सम्प्रदाय ] के साधुओं की सेवा करना (१०) संघ अर्थात् चतुर्विध तीर्थ की सेवा करना। .
(४) स्वाध्यायतप-मानसिक विकास के लिए और शान वृद्धि के लिए शास्त्रों का पठन-पाठन करना स्वाध्यायतप कहलाता है। स्वाध्याय पांच प्रकार का है:
[१] वाचना-शिष्य को सूत्र एवं अर्ध की वांचनी देना। . . . .
[२] पृच्छना-वाचना लेकर उसमें संशय होने. एर पुनः पूछना या प्रश्न करना पृच्छना है।
। ३] परिवर्तना-पढ़े हुए विषय में शंकायें देखने के लिए बार-बार फरना।
[४] अनुप्रेक्षा-सीखे हुए खून को याद रखने के लिए पुनः-पुनः चिन्तनमनन करना।
[५] धर्मकथा-चारों प्रज्ञार के स्वाध्याय में कुशल होकर धर्म का उपदेश देना।
(५) ध्यानतप-मानसिक चिन्ता का निरोध करके उसे एकान करना ध्यान तप है। इसके चार भेद हैं । उनका विवरण पहले किया जा चुका है। .
(६) व्युत्लर्गतप-फाय आदि सम्बन्धी ममता का त्याग व्युत्सर्ग तप है। इसके प्रधान दो भेद हैं:-[१] द्रव्य व्युत्सर्ग और [२] भाव व्युत्सर्ग । इसमें से द्रव्य व्युत्सर्ग के चार भेद हैं-[१) शरीर व्युत्लग [२) गण व्युत्लग [३] उपधि व्युत्सर्ग और [५] भक्त पान व्युत्सर्ग । .
[१] शरीर व्युत्सर्ग-शरीर की ममता का त्याग कर अंग विशेष की ओर लक्ष्य न दना।
[२] गण व्युत्तर्ग-विशेष ज्ञानी, जितेन्द्रिय, धीर, वीर शरीर सम्पत्ति वाला, क्षमावान्, शुद्ध श्रद्धा से युक्त और अवसर का छाता मुनि, गुरु की भाशा से संप्रदाय का त्याग करके अकेले विहार करे, वह गण व्युत्सर्ग है।
[३ Jउपधि व्युत्सर्ग-संयम के उपकरण कम रखना उपधि व्युत्लर्ग है।
[४] भक्त पान व्युत्सर्ग-नवकारसी, पोरंसी आदि तप करना और खानेपीने की वस्तुओं का यथा योग्य त्याग करना भक्त पान व्युत्सर्ग तप है । यह द्रव्य व्युत्सर्ग के चार भेद हैं।
___ भाव व्युत्सर्ग के तीन भेद हैं । यथा-[१] कपाय व्युत्सर्ग [२] संसार ब्युत्सर्ग और [३] कर्म व्युत्सर्ग। इनका स्वरूप इस प्रकार है:--
। (१) पाय व्युत्सर्ग--क्रोध, मान, माया और लोभ कपाय को न्युन से न्यनतर बनाना।