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पन्द्रहवां अध्याय
[ ५६३ ]
मूलः - सच्चा तहेव मोसा य, सच्चामोस त य । उत्थी समोसा य, मणगुत्ती चडाविहा ॥३॥
छाया:--सत्या तथैव मृषा व सत्यामृषा तथैव च । चतुर्थी सत्यामृषा तु मनोगुप्तिश्चतुर्विधा ॥ ३॥
शब्दार्थ : - मनोगुप्ति चार प्रकार की है - (१) सत्य मनोगुप्ति ( २ ) असत्य मनोगुप्ति (३) सत्या सत्य मनोगुप्ति और (४) असत्य - अमृषा मनोगुप्ति ।
भाष्यः
- सन को निग्रह करने का उपदेश पहले दिया गया है, पर मन की प्रवृत्ति का विश्लेषण किये बिना उसका यथावत् निग्रह नहीं हो सकता । अ यहां मानसिक प्रवृत्ति का विश्लेषण किया गया है ।
श्रर्त्तिध्यान, रौद्रध्यान, संरंभ, समारंभ और आरंभ संबंधी संकल्पविकल्प न करना, इह परलोक में हितकारी धर्मध्यान संबंधी चिन्तन करना, मध्यस्थ भाव रखना, अशुभ एवं शुभ योग का विरोध करके अयोगी अवस्था में होने वाली श्रात्मा की अवस्था प्राप्त करना मनोगुप्ति है। तात्पर्य यह है कि मन की नाना प्रकार की प्रवृत्ति को रोक देना मनोगुप्ति कहलाती है ।
मन की प्रवृत्ति चार प्रकार के विषय में होती हैं-सत्य विषय में, असत्य विषय में, सत्यासत्य अर्थात उभय रूप विषय में एवं अनुभयरूप - जो सत्य भी न हो और असत्य भी न हो ऐसे विषय में । इन्हीं चार भेदों को चार मनोयोग कहते हैं । इनका सामान्य स्वरूप इस प्रकार है:
( १ ) सत्य मनोयोग - मन का जो व्यापार सत या साधु पुरुषों के लिए हित कारक हो, उन्हें मुक्ति की ओर ले जाने वाला हो वह अथवा जीव, अजीव आदि पदार्थों के यथार्थ स्वरूप का विचार संत्य मनोयोग कहलाता है ।
(( २ ) श्रसत्यमनोयोग - सत्य से विपरीत अर्थात संसार की ओर ले जाने वाला मानसिक व्यापार असत्य मनोयोग कहलाता है । श्रथवा जीव आदि पदार्थों के वास्तविक रूप का चिन्तन करना असत्यमनोयोग कहलाता है । जैसे, आत्मा नहीं है, पदार्थ एकान्त रूप है, आत्मा स्वभाव से जड़ है, इत्यादि ।
( ३ ) सत्यासत्य मनोयोग - जिसमें कुछ अंशों में सच्चाई हो और कुछ अंशों में मिथ्यापन हो ऐसा मिश्रित विचार सत्यासत्य मनोयोग कहलाता है । व्यवहारनय से ठीक होने पर भी निश्चयनय से जो विचार पूर्ण सत्य न हो उसे उभयमनोयोग भी कहते हैं । जैसे- किसी वन में तरह-तरह के वृक्ष हैं-धव खंदिर, पलाश आदि सभी विद्यमान है परन्तु अशोकवृक्षों की अधिकता होने के कारण उसे अशोकवन कहना । वन में अशोकवृक्षों कि अधिकता के कारण उसे 'अशोकवन' कहना सत्य है, मगर अन्य वृक्षों का सदभाव होने से 'अशोकवन' कहना असत्य भी ठहरता है ।
( ४ ) असत्यामृपा मनोयोग - जो मानसिक विचार सत्य रूप भी नहीं और